देश में कोरोना की रफ्तार रिकॉर्ड तेजी से बढ़ रही है। पिछले हफ्ते से हर दिन आ रहे 2 लाख 50 हजार से ज्यादा मामलों से महाराष्ट्र, दिल्ली सहित अन्य राज्यों में लॉकडाउन लग गया है। दूसरी ओर चुनावी रैलियों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मामले की गंभीरता को समझते हुए राष्ट्र के नाम एक संदेश दिया। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन को अंतिम विकल्प के रूप में ही इस्तेमाल किया जाए।
देशभर में लॉकडाउन जैसे कदम पर सरकार की नरमी को समझने के लिए हमने भी अलग-अलग सेक्टर के 4 एक्सपर्ट्स से बात की, जिसमें पब्लिक हेल्थ पॉलिसी एक्सपर्ट डॉ. चंद्रकांत लहरिया, रिटायर्ड बैंकर और मार्केट एक्सपर्ट अजय बग्गा, सीनियर इकोनॉमिस्ट बृंदा जागीरदार और सोशियोलॉजिस्ट चित्रा अवस्थी शामिल हैं। आइए जानते हैं इनका क्या कहना है...
- सभी एक्सपर्ट्स लॉकडाउन न लगाने पर पर एकराय हैं
- लॉकडाउन की बजाय बेवजह घर से बाहर न निकलने जैसी पाबंदियों पर सख्ती की जरूरत
- सरकार से हेल्थ सर्विसेज सुधारने में चूक हुई, सालभर में इस ओर बड़ा कदम नहीं उठाया गया
- यूरोप की तर्ज पर सोशल सिक्योरिटी वेजेज देना चाहिए, जिससे आम लोगों में जिम्मेदारी की भावना जागे
रिटायर्ड बैंकर और मार्केट एक्सपर्ट अजय बग्गा कहते हैं कि देश की GDP में सर्विस सेक्टर की बड़ी हिस्सेदारी है और यह पिछले एक साल से सुधर नहीं पा रही। प्रमुख राज्यों में आंशिक लॉकडाउन से बड़ी संख्या में इनफॉर्मल वर्कर गांव लौट रहे हैं। इसका असर इकोनॉमिक रिकवरी पर ही तो पड़ेगा। ग्लोबल रेटिंग एजेंसी क्रेडिट सुइस ने भी कहा है कि राज्यों में लॉकडाउन से GDP पर बुरा असर पड़ रहा है।
पिछली बार जैसा लॉकडाउन लगने की संभावना बेहद कम
अजय बग्गा ने कहा कि अगर आंशिक लॉकडाउन एक या डेढ़ महीने रहता है तो GDP में हर महीने के हिसाब से 1-1.5% की गिरावट आ सकती है। हालांकि इंडस्ट्रियल एक्टिविटी चलने से पिछले साल जैसा सख्त लॉकडाउन लगने की संभावना बेहद कम है।
सीनियर इकोनॉमिस्ट बृंदा जागीरदार का कहना है कि इकोनॉमी को इस बार भी एग्री सेक्टर से पूरा सहयोग मिलेगा। साथ में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर भी होगा। लेकिन मजदूरों के पलायन से सर्विस सेक्टर पर बुरा असर पड़ा है। हालांकि, पिछले साल की तरह GDP पर ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला।
लॉकडाउन को अंतिम विकल्प के तौर पर देखने से सवाल उठता है कि कोरोना से निपटने के क्या विकल्प हैं?
पब्लिक हेल्थ पॉलिसी एक्सपर्ट डॉ. चंद्रकांत लहरिया कहते हैं कि लॉकडाउन लगाने से स्वास्थ्य सेवाओं को तैयार करने का समय मिलता है, जो हमने सालभर पहले देखा। मौजूदा समय में लॉकडाउन का कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि अभी जो संक्रमण फैला है वह 10-15 दिन पहले फैलना शुरू हुआ था।
उन्होंने कहा कि अगर अभी से लोगों को जागरूक किया जाए और बेवजह बाहर निकलने पर सख्ती बरती जाये तो अगले 10 दिनों में कोरोना के मामलों में गिरावट देखने को मिल सकती है। इसके अलावा स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा किया जाना चाहिए।
देश की सबसे बड़ी कार बनाने वाली कंपनी मारुति सुजुकी के चेयरमैन RC भार्गव भी मानते हैं कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में लॉकडाउन जैसे कदम ठीक नहीं हैं। ET के साथ इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि कर्फ्यू और लॉकडाउन से काफी लोगों को दिक्कतें होंगी। यह सही सॉल्यूशन नहीं।
कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में अमेरिका, ब्रिटेन सहित ब्राजील शामिल है। सख्त लॉकडाउन से इन देशों की इकोनॉमी में भी गिरावट देखने को मिली। लेकिन फिर तेजी रिकवरी करते हुए पटरी पर लौट गईं, कैसे ?
अजय बग्गा ने कहा कि यूरोप और अमेरिकी इकोनॉमी में सुधार के पीछे भारी राहत पैकेज रहा। यूरोप में ये राहत पैकेज सीधे कंपनियों को दी गई,जिससे नौकरियां नहीं गई। वहीं, अमेरिका में इसका बेनिफिट कंपनियों और लोगों तक पहुंचा। इससे लोगों ने खर्च बढ़ाया, नतीजा यह रहा कि तेजी से इकोनॉमिक हालात सुधरे।
उन्होंने कहा कि भारत में भी राहत पैकेज का ऐलान किया गया। RBI ने ब्याज दरों में कटौती की और छोटे-मझोले कारोबारियों के लिए रीस्ट्रक्चरिंग की गई। इसके अलावा फूड सब्सिडी भी दी गई। बावजूद इसके सर्विस सेक्टर पर बुरा असर पड़ा।
अमेरिका और ब्रिटेन जैसे कई देशों ने अपने नागरिकों को भारत जाने से बचने की सलाह दी है। ऐसे में कोरोना की पहली लहर की मार से हॉस्पिटैलिटी, टूरिज्म और एयरलाइंस उबर भी नहीं पाए थे कि अब दूसरी लहर से ये सेक्टर बुरी तरह प्रभावित होंगे अजय बग्गा कहते हैं कि 2020-21 में एयरलाइंस को होने वाला घाटा 26 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है।
वहीं, डॉ. चंद्रकांत लहरिया कहते हैं कि यूरोप, अमेरिका से भारत की कोई तुलना ही नहीं है। क्योंकि वहां लॉकडाउन या इस तरह का कोई फैसला लिया जाता है तो लोगों को सोशल सिक्योरिटी वेजेस दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर अगर लॉकडाउन है तो सरकार की ओर से लोगों को 2 हजार डॉलर दिया जाएगा। इससे आम आदमी को फाइनेंशियल दिक्कत कम होती है और इससे सरकार को लोगों का सपोर्ट मिलता है, लेकिन भारत में ये थोड़ा कम संभव है।
हालांकि, बृंदा जागीरदार मानती है कि भारत और अन्य देशों के बीच तुलना में अहम फैक्टर जनसंख्या है। दूसरा कि हेल्थ बजट पर विदेश में ज्यादा खर्च किए जाते हैं, जो भारत में काफी कम है। इसके अलावा वहां लोग भारतीयों से ज्यादा जिम्मेदार हैं। भारत की इकोनॉमी में सर्विस सेक्टर की ज्यादा भागीदारी भी मुश्किल खड़ी करती है।
डॉ. चंद्रकांत कहते हैं कि अमेरिका में 33 करोड़ की आबादी में 90 लाख एक्टिव केस हैं, लेकिन अफरातफरी नहीं है। वहीं, भारत में 130 करोड़ से ज्यादा की आबादी में 9-10 लाख केस एक्टिव होने पर हालात बेकाबू हैं। यानी हमें अपनी हेल्थ सर्विसेस पर काम करने की जरूरत है।
पिछले साल जैसा न भुगतना पड़े, इसलिए अभी से शहर छोड़ रहे मजदूर
पिछले साल की तरह लॉकडाउन और स्वास्थ्य चिंताओं से प्रवासी मजदूर तेजी से घर वापसी कर रहे। इस दौरान लोगों में कोरोना का भय कम और घर पहुंचने की जल्दबाजी ज्यादा नजर आ रही। सोशल डिस्टेंसिंग तो दूर लोग मास्क भी पहनने से कतरा रहे हैं।
पलायन कर रहे मजदूरों पर सोशियोलॉजिस्ट चित्रा अवस्थी कहती हैं जरूरी नहीं है कि लोग लॉकडाउन की वजह से घर जा रहे। दरअसल, इस सीजन में ज्यादातर मजदूर घर जाते हैं।
दिल्ली का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि पिछले साल कंपनियों में काम करने वाले मजदूरों की सख्त जरूरत थी, लेकिन कोई नहीं मिल रहा था। करीब तीन महीने बाद यानी बरसात से ठीक पहले एक बार फिर मजदूरों की भीड़ शहरों को ओर वापसी करने लगी।
चित्रा अवस्थी कहती हैं कि कोरोना के पहले भी अप्रैल-मई के दौरान बड़ी संख्या में मजदूर गांव जाते रहे हैं। फिर 1 या 2 महीने बाद फिर वापसी करते हैं। पलायन के लिए केवल कोरोना और लॉकडाउन को जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं।
लॉकडाउन से शहरों में बढ़ रही बेरोजगारी
दिल्ली बेस्ड थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के मुताबिक 18 अप्रैल को बीते हफ्ते में शहरी बेरोजगारी दर 10.72% हो गई, जो पिछले हफ्ते 9.81% रही थी। इस दौरान ओवरऑल बेरोजगारी दर घटकर 8.4% रही, जो पिछले हफ्ते 8.58% थी।
CMIE के MD महेश व्यास ने कहा कि महामारी के चलते 1 करोड़ सैलरी पाने वाले लोगों में से 60 लाख लोगों की नौकरी गई। बेरोजगारी दर पिछले साल 3 मई को 27.11% पर पहुंच गई थी। उन्होंने कहा कि शहरी बेरोजगारी बढ़ने की मुख्य वजह महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे राज्यों में लॉकडाउन है।
PM को इकोनॉमी की चिंता भी है, पिछले साल की गलती नहीं दोहराना चाहते
दरअसल, ज्यादातर एक्सपर्ट्स मान रहे हैं कि प्रधानमंत्री की चिंता स्वास्थ्य के साथ-साथ इकोनॉमी को लेकर है, क्योंकि पिछले साल देशभर में सख्त लॉकडाउन से इकोनॉमी में ऐतिहासिक गिरावट आई और GDP ग्रोथ रेट पहली तिमाही में 23.9% फिसल गई थी।
यह गिरावट लगातार दो तिमाहियों तक जारी रही, जो अक्टूबर-दिसंबर के दौरान 0.4% की मामूली बढ़त के साथ पॉजिटिव हुई। RBI के मुताबिक जनवरी-मार्च, यानी चौथी तिमाही के दौरान भी GDP में 5% की पॉजिटिव ग्रोथ देखने को मिल सकती है।
लेकिन कोरोना के बढ़ते मामलों और सख्त पाबंदियों से रेटिंग एजेंसियों ने फाइनेंशियल इयर 2021-22 के लिए GDP ग्रोथ पर अपना अनुमान घटा दिया है। क्योंकि कर्फ्यू और लॉकडाउन से इकोनॉमिकल एक्टिविटीज पर बुरा असर पड़ रहा है। कोरोना के लगातार बढ़ रहे मामलों का बुरा असर अप्रैल में गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन, बिजली खपत, GST ई-वे बिल जनरेशन में गिरावट के रूप में भी देखा जा सकता है।