कोविड सेंटर में जाने से पहले आखिरी बार अपने पति का हाथ थामे पत्नी हो, मौत के मुंह में जाकर वापस लौटे किसी शख्स को महीनों बाद मिले परिजन हों, तड़पते मरीज को भरोसा दिलातीं नर्सेज हों, अपनी आंखों के सामने हारती जिंदगी को देखते डॉक्टर हो, या फिर रोज कोरोना मरीजों का अंतिम संस्कार करते फ्यूनरल वर्कर्स, ऐसी कितने ही लम्हों की तस्वीरें हमारे बीच तैर रही हैं। लेकिन शायद ही कभी हमारा ध्यान इन तस्वीरों के खींचने वालों पर जाता है।
एसोसिएट प्रेस यानी AP ने अपने 13 देशों के 15 फोटोग्राफर्स से कहा कि वो कोरोना काल के दौरान की कोई एक तस्वीर भेजें, जिसने उनकी जिंदगी पर गहरा प्रभाव छोड़ा हो और ये भी बताएं कि उसके पीछे की कहानी क्या है। आइए इन तस्वीरों को देखते हैं और जानते हैं कि इन्होंने फोटोग्राफर्स की जिंदगियों को कैसे प्रभावित किया।
(फोटो- AP Photo/Ebrahim Noroozi)
19 दिसंबर, 2020, उत्तरी इरान का घीमशहर। फोटोग्राफर इब्राहिम नोरूजी रोज की तरह तस्वीरें लेने निकले थे। तभी उनकी आंखों के सामने एक ऐसा भयावह मंजर आया, जिसकी तस्वीर लेने के लिए कैमरे उठाने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। फिर उन्होंने 18 साल के मो. हुसैन खोशनजर, 31 साल के हसन कबीर और 53 साल के अली रहीमी को देखा, आखिर वे तीनों कैसे कोरोना से हुई मौत वाली लाश को साफ कर रहे हैं, दफनाने की तैयारी कर रहे हैं। इब्राहिम कहते हैं, 'मैं बस एक लाश देखकर थर्रा गया था, ये वर्कर्स 500 लाशों को रोज दफनाते हैं। इसके बाद भी अगले दिन काम पर आते हैं, उसी जज्बे को ध्यान रखकर मैं खुद को बचा सका, वर्ना वो लम्हा पूरी तरह से तोड़ देने वाला था।' उनकी आंखों के सामने कोरोना से दम तोड़ देने वाले 59 वर्षीय शख्स को दफनाने से पहले नहलाया जा रहा था।
(फोटो- AP Photo/Alessandra Tarantino)
इस तस्वीर को आपने देखा? एक बार फिर से देख लीजिए। कुछ अंदाजा लग रहा है? यह 18 अप्रैल 2020 की फोटो है। रोम के जाने-माने रोनी-रोलर सर्कस शो होने वाला था। लेकिन तभी पहले इटली में पूर्ण लॉकडाउन लग गया। लेकिन एक सर्कस कर्मी तैयार होकर आई और उसने शो किया। हालांकि उसे देखने के लिए कोई दर्शक नहीं था। इस लम्हें की फोटो खींचने वाले एलेसेंड्रा टारनटिनो कहते हैं कि बिना किसी म्यूजिक और दर्शक के लगातार करतब दिखाना और उस सर्कस कर्मी के चेहरे के भावों को देखना अंदर तक झकझोर देने वाला था।
(फोटो- AP Photo/Alexander Zemlianichenko)
एपी फोटोग्राफर अलेक्जेंडर जमेलियानिचेंको आज भी मॉस्को के उस रूसी फादर वसीली गेलवन के संपर्क में है, जो लगातार बीमार लोगों के घरों में जाकर प्रार्थना करते हैं और टूटते भरोसे को जगाते हैं। अलेक्जेंडर कहते हैं कि 1 जून 2020 की इस तस्वीर ने उनके ऊपर गहरा प्रभाव छोड़ा। इसमें दो चीजें हैं, बीमार महिला के प्रति फादर की हमदर्दी और फादर के मन में डर होने के बाद भी खुद को लोगों के लिए खतरे में डालना। इस तस्वीर के चलते अलेक्जेंडर के भीतर एक बदलाव आया और उनके मन में वायरस का डर कम हुआ।
(फोटो- AP Photo/Natacha Pisarenko)
अर्जेंटीना की फोटोग्राफर नताशा पिजॉरेन्को जब कभी खुद की खींची हुई इस तस्वीर को देखती हैं, खिल उठती हैं। बताती हैं कि 13 अगस्त 2020 को 84 साल की ब्लांका ओर्टिज को छुट्टी मिल रही थी। उन्होंने कोरोना को हरा दिया था। नताशा ने जब फोटो लेने के लिए कैमरा निकाला तो ब्लांका ने ठहाके लगाते हुए दोनों हाथों की मुट्ठियां भींची और आसमान की ओर झटक दीं। इस लम्हें ने फोटो खींचतीं नताशा की आंखें नम कर दीं। वह बताती हैं, 'ये मेरे जिंदगी का बेहद अनोखा और खुशनुमा लम्हा था। कई बार इस तस्वीर से उन्हें आत्मबल मिलता है।'
(फोटो- AP Photo/Felipe Dana)
ब्राजील के फोटोग्राफर फिलिप डैना महामारी के पहले स्पेन में एक असाइंनमेंट पर गए हुए थे। उन्हें अचानक ब्राजील बुला लिया गया। उन्हें फ्यूनरल वर्कर्स यानी लाश दफनाने वाले कर्मचारियों की तस्वीरें खींचने के लिए कहा गया। जब उन्होंने काम शुरू किया तो देखा कि लाशों को सड़क के रास्ते ले जाने के बजाय शहर से दूर एक नदी से ले जाया जा रहा है। उन्हें समझ नहीं आया, उन्होंने किराए पर एक नाव ली और लाश वाली नावों का पीछा करने लगे। बाद में उन्हें पता चला कि नाव से इसलिए ले जा रहे हैं क्योंकि आम रास्ते से ले जाने में वायरस के फैलने का डर था। इसलिए लाशों को पानी के रास्ते ले जाया जा रहा था। ये देखने के बाद फिलिप के अंदर एक ऐसा डर बैठ गया कि आज भी इससे उबर नहीं पाए हैं।
(फोटो- AP Photo/Ariana Cubillos)
एरियाना क्यूबीलोस जब कभी अपनी ये तस्वीर देखते हैं तो उनको अजीब सा डर लगता है। उन्हें लगता है कि कोरोना ने उनसे उनकी आजादी छीन ली। ये तस्वीर 8 अगस्त 2020 की है। इसमें वेनेजुएला पुलिस कर्फ्यू का पालन न करने वाले कुछ लोगों को वैन में भरकर ले जा रही है।
(फोटो- AP Photo/Manish Swarup)
दिल्ली के फोटोग्राफर मनीष स्वरूप जब कभी अपनी ये फोटो देखते हैं तब वो अजीब से अकेलेपन और तनाव में डूब जाते हैं। उन्होंने ये तस्वीर तब खींची थी, जब प्रवासी मजदूरों के साथ आई एक बच्ची को स्कूल में क्वारैंटाइन किया गया था। इस बच्ची के आसपास कोई नहीं था। वो उदासीन नजरों से खिड़की से बाहर झांक रही थी।
(फोटो- AP Photo/Jae C. Hong)
कैलिफोर्निया के सेंट ज्यूड मेडिकल सेंटर की इस तस्वीर को जाय सी हॉन्ग ने खींचा था। जाय तब अपने परिवारिक काम से सेंटर गए हुए थे। तभी उन्होंने एक पत्नी को आखिरी बार अपने पति को अलविदा कहते हुए देखा। तस्वीर तो उन्होंने खींच ली। लेकिन ये तस्वीर हर बार उन्हें अंदर तक झकझोर देती है। वह कहते हैं, 'मेरे करियर में ये पहली दफा था, जब मैंने किसी को मरते हुए देखा।'
(फोटो- AP Photo/John Minchillo)
पिछले साल न्यूयॉर्क के सभी अस्पतालों और श्मशान पर फोटो जर्नलिस्ट प्रतिबंधित थे। लेकिन बाद में कुछ अस्पतालों ने फोटोग्राफर्स को अनुमति दी। उन्हें लगा कि जब लोग अपनी आंखों से सच्चाई देखेंगे तो शायद वो इस बीमारी को गंभीरता से लेंगे। तब जॉन मिनचिलो को एक अस्पताल में जाने का मौका लगा। उनकी आंखों के सामने एक कोरोना मरीज को कार्डियक अरेस्ट आया। अस्पताल का स्टाफ एक तरफ उसका इलाज कर रहा था तो दूसरी तरफ उसका विश्वास न टूटे, इसलिए अजीबोगरीब हरकतें कर रहा था। फोटोग्राफर जॉन कहते हैं कि कुछ पल के लिए उनके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। वो तय नहीं कर पा रहे थे कि फोटो खींचे या न खींचे।
(फोटो- AP Photo/Ng Han Guan)
ये तस्वीर चीन के वुहान शहर की है। 76 दिन बाद लॉकडाउन खुलने के बाद जब फोटोग्राफर एनजी हान गुआन ने एक बच्चे को मास्क लगाकर सोते देखा तो उनके मन में गहरे तक एक नकारात्मकता भर गई। उन्हें बीते ढाई महीनों की वो सारी बातें याद आ गईं, जब पूरा शहर मौत के मुंह में चला गया था। बाद में नदी किनारे घूमते इक्का-दुक्का लोगों में उन्हें उम्मीद नजर आई।
(फोटो- AP Photo/Emilio Morenatti)
22 जून 2020, स्पेन के बार्सिलोना के एक अस्पताल में 81 साल की ऑगस्टीना कैनामेरो ने अपने 84 साल के पति पास्कल पेरेज को छोड़ने से पहले भागकर गले से लगा लिया और किस करने लगीं। उनके बीच एक प्लास्टिक की चादर थी। इस पल को कैमरे में कैद करने वाली एमिलो मॉरेनटी कहती हैं, 'फोटो खींचते वक्त मैं खुद को संभाल नहीं पाई। आंखों से आंसू गिर रहे थे। मैंने बहुत गहराई तक अपने भीतर एक दर्द महसूस किया।'
(फोटो- AP Photo/Jerome Delay)
28 मार्च 2020 ईस्ट जोहांसबर्ग की अलेक्जेंड्रा टाउनशिप के बॉयज हॉस्टल के सामने तैनात बंदूकधारी पुलिसफोर्स और दरख्तों से झांकते लोग। फोटोग्राफर जेरोम देरी बताते हैं कि इस तस्वीर को देखते ही उन्हें 1994 के पहले का साउथ अफ्रीका याद आ जाता है। जब वो फोटो खींच रहे थे, तब बॉयज हास्टल से लोग चिल्ला रहे थे, 'अगर हम बाहर नहीं जाएंगे, काम नहीं करेंगे तो खाएंगे क्या? हमारे पास खाने को कुछ भी नहीं है।'
(फोटो- AP Photo/Rodrigo Abd)
पेरू का लीमा शहर। यहां लंबा रेगिस्तान है। यहां करीब एक करोड़ लोग गरीबी स्तर से नीचे का जीवन जीते हैं। कई बार उनके पास पीने का पानी भी नहीं होता। ऐसी जगह पर जाकर काम करने वाले हेल्थकेयर स्टाफ के लिए कितना कठिन होता है कि किसी कोरोना मरीज को संभालें और अगर उसकी मौत हो जाती है तो उसे दफनाएं भी। फोटोग्राफर रोड्रिगो एबीडी कहते हैं, 'मैं कभी इस तस्वीर को भुला नहीं सकता, फ्यूनरल स्टाफ उस कठिन जगह में जैसे काम कर रहा था, उसे देखकर पीड़ा और अपने काम के प्रति मुस्तैदी का भाव, दोनों आता है।'
(फोटो- AP Photo/Oded Balilty)
ये तस्वीर इजराइल के फोटाग्राफर ओडेद बैलिल्टी ने 21 सितंबर 2020 को खींची थी। इसमें होलोकॉस्ट सर्वाइवर यानी जब जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर इजराइल के लोगों को बंदी बनाकर मार रहा था, तब उसमें बच निकलने वाले एहोशुआ डेटसिनिगर अपने हाथ पर छपे बंदी नंबर वाले टैटू पर ताबीज बांधते दिख रहे हैं। वे सुबह की प्रार्थना के लिए यहूदियों के उपासनागृह सिनेगॉग जा रहे हैं, जबकि सरकार ने इसे केवल 20 लोगों के लिए ही खोला था। ओडेद कहते हैं, 'एहोशुआ को देखकर मुझे लगा वो पिछली जंग भी जीत गए थे, अब एक बार फिर वो दूसरी जंग के लिए तैयार हो रहे हैं। इस बात ने मेरे ऊपर गहरा प्रभाव डाला।'
(फोटो- AP Photo/Andre Penner)
ये आखिरी तस्वीर 1 अप्रैल 2020 की है। ये भयावह जगह ब्राजील के साओ पाउलो की है। इसे आंद्रे पेनर ने खींचा है। जब पहली बार सोशल मीडिया में ये तस्वीर वायरल होना शुरू हुई तो प्रेसिडेंट जायर बोल्सनारो ने इसे 'फेक न्यूज' कह दिया था। दरअसल, ब्राजील सरकार लगातार मौत के सही आंकड़ों को बताने से बच रही थी। उसी दरम्यान आंद्रे ने ये तस्वीर अपने घर से ड्रोन उड़ाकर खींची थी। वो डरे हुए थे कि अगर वो बाहर गए तो वायरस घर ले आएंगे, लेकिन ये तस्वीर देखने के बाद उनके मन में अजीब भय बस गया।