सोमेन देबनाथ, तारीख 27 मई 2004। उम्र तकरीबन 21 साल रही होगी। जुनून साइकिल पर सवार होकर पूरी दुनिया को नाप लेने का। मकसद दुनियाभर में AIDS को लेकर लोगों को अवेयर करना। कमिटमेंट ऐसा कि जंगलों में रहे, कई दिन भूखे सोना पड़ा, लूट के शिकार हुए, मारपीट भी हुई। यहां तक कि अगवा भी कर लिए गए, लेकिन हार नहीं मानी। 17 साल बाद भी उनका सफर जारी है। एक-एक देशों के नाम उनको याद है। अब तक 157 देशों का दौरा कर चुके हैं और 1.7 लाख किलोमीटर साइकिल चला चुके हैं। अभी वे अमेरिका के दौरे पर हैं। हमने फोन पर उनके इस सफर के बारे में विस्तार से बात की। आज की खुद्दार कहानी में पढ़िए सोमेन की कहानी...
14 साल की उम्र में अखबार में AIDS के बारे में पढ़ा
पश्चिम बंगाल के साउथ 24 परगना के एक छोटे से गांव बासंती के रहने वाले सोमेन एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं। शुरुआती पढ़ाई गांव में ही हुई। सोमेन जब 14 साल के थे तो उन्होंने अखबार में एक आर्टिकल पढ़ा। टॉपिक था, 'AIDS is more deadly than Cancer'। इसके बाद उनके मन में AIDS को लेकर उत्सुकता जगी। उन्होंने जानकारी जुटानी शुरू की। अपने टीचर्स से पूछना शुरू किया, लेकिन तब AIDS को लेकर लोग बहुत अवेयर नहीं थे। सोमेन को कोई भी AIDS के बारे में कुछ खास जानकारी नहीं दे पाया। दो साल बाद सोमेन ने WBSACS (Society of West Bengal State AIDS Control) से AIDS के बारे में स्पेशल ट्रेनिंग ली।
सोमेन अपनी साइकिल पर एक बैग में डेली यूज का हर सामान पैक करके रखते हैं। साइकिल खराब हुई तो उसे ठीक भी कर लेते हैं।
इसके बाद निकल पड़े लोगों को अवेयर करने। शुरुआत उन्होंने अपने गांव से की। फिर आसपास के इलाकों में लोगों को अवेयर करना शुरू किया। करीब 4 साल तक उन्होंने अपनी मुहिम जारी रखी। इसी बीच उनका ग्रेजुएशन भी पूरा हो गया।
सोमेन को लगा कि अब इस मुहिम को आकार देना चाहिए। अपने जिले के साथ-साथ उन्हें देशभर के लोगों को भी अवेयर करना चाहिए। बस क्या था, उन्होंने साइकल पर इंडिया की सैर करने की योजना बना ली। पैरेंट्स को जब पता चला तो वे काफी नाराज हुए। सोमेन के पिता ने साफ मना कर दिया कि कहीं नहीं जाना है। उनकी मां भी नहीं चाहती थीं कि वे साइकल पर देशभर की यात्रा करें।
शुरुआत में तीन महीने के लिए मिली इजाजत
बहुत मिन्नतों के बाद आखिरकार तीन महीने के लिए सोमेन को इजाजत मिल गई। यहां से सोमेन के भारत भ्रमण की शुरुआत हुई। पहले उन्होंने नार्थ ईस्ट की सैर की। स्कूल-कॉलेज में गए, गांवों का दौरा किया, झुग्गियों में गए, सेक्स वर्कर्स से मिले और लोगों को एड्स के बारे में अवेयर करना शुरू किया। इन तीन महीनों में उन्होंने नार्थ ईस्ट के सभी राज्यों का भ्रमण कर लिया।
कैलिफोर्निया के स्कूली बच्चों के साथ सोमेन देबनाथ। सोमेन को इस यात्रा में बच्चों से बहुत लगाव रहा है।
सोमेन कहते हैं कि मेरे लिए ये तीन महीने बहुत शानदार रहे। मैं अपने काम से खुश था। मुझे लगा कि अब इस मिशन को आगे ले जाना चाहिए और बाकी राज्यों के लोगों को भी अवेयर करना चाहिए। फिर उन्होंने अपने पेरेंट्स को अपने प्लान के बारे में जानकारी दी। जैसे-तैसे करके तीन महीने और घूमने की इजाजत उन्हें मिल गई।
ढाई साल में भारत की यात्रा पूरी की
सोमेन इसी तरह एक के बाद एक अपना प्लान आगे बढ़ाते रहे। जब एक साल पूरा हो गया तो उन्होंने तय किया कि वे अब वापस नहीं लौटने वाले हैं। इसके बाद उन्होंने एक-एक करके देश के सभी राज्यों और यूनियन टेरेटरिज का दौरा करना शुरू किया। वे हर जगह साइकल से ही सफर करते थे। रास्ते में लोग उनकी मदद करते थे और भोजन की व्यवस्था कर देते थे। इस दौरान वे राज्यों के मुख्यमंत्रियों और राज्यपाल से भी मिले। सभी ने उनके काम की तारीफ की। करीब ढाई साल में उन्होंने पूरे भारत को कवर कर लिया।
भारत भ्रमण सफल रहा तो पूरी दुनिया घूमने का बनाया प्लान
सोमेन कहते हैं कि भारत का सफर पूरा करने के बाद मैंने वर्ल्ड अवेयरनेस का प्रोग्राम बनाया। और 2007 में एशिया से अपने सफर की शुरुआत की। मेरा पहला देश नेपाल रहा। 2009 तक मैंने एशिया के 28 देशों का सफर किया। इसके बाद यूरोप और ग्रीनलैंड के 45 देशों में गया। फिर अफ्रीका, मिडिल ईस्ट, साउथ अमेरिका, सेंट्रल अमेरिका, नॉर्थ अमेरिका सहित 157 देशों में जा चुका हूं। सोमेन ने 191 देशों में जाने का टारगेट रखा है। इस दौरान वे करीब 20 मिलियन लोगों से मिलेंगे। उन्हें उम्मीद है कि वे 2022 तक अपना मिशन पूरा कर भारत वापस लौटेंगे। सोमेन अब तक सिर्फ एक बार भारत आए हैं। 11 दिनों के लिए जब उनके पिता की मौत हो गई थी।
AIDS को लेकर लोगों को कैसे करते हैं अवेयर?
सोमेन हर रोज साइकिल से गांवों और शहरों में जाते हैं। खासकर उन बस्तियों में जहां गरीब, मजदूर, सेक्स वर्कर्स और कम पढ़े लिखे लोग रहते हैं। सोमेन उन्हें सबसे पहले AIDS के बारे में समझाते हैं। इसके बाद उससे बचने के तरीके बताते हैं। इसके साथ ही वे सेमिनार भी आयोजित करते हैं। युवाओं को जागरूक करने के लिए वे स्कूल-कॉलेजों में जाते हैं। वहां कार्यक्रम करते हैं, प्रजेंटेशन देते हैं। ताकि उन्हें सही जानकारी मिल सके। जरूरत पड़ती है तो सोमेन कई दिनों तक उन बस्तियों में ठहर भी जाते हैं।
अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य के बेकर्सफील्ड के मेयर के साथ सोमेन देबनाथ, अपनी साइकिल के साथ।
अफगानिस्तान में अगवा हुए, बाल बाल बचे
सोमेन को अब तक के सफर में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। कई बार उनके साथ मारपीट और लूट पाट हुई है, लेकिन सबसे दर्दभरा एक्सपीरियंस रहा जब 2007 में तालिबान में वे अगवा कर लिए गए। उन्हें 23 दिनों तक अंधेरे में रखा। खाना भी नहीं देते थे। कई बार गुस्से में उन लोगों ने सोमेन को बुरी तरह पीटा भी। खैर उनकी किस्मत अच्छी रही, जैसे तैसे करके 24वें दिन उन लोगों ने सोमेन को छोड़ दिया।
फंड की व्यवस्था कैसे करते हैं?
17 साल पहले जब सोमेन अपने सफर पर निकले थे तब उनकी जेब में महज 423 रुपए थे। अब तक की यात्रा के दौरान उन्हें कई बार मुसीबतों का सामना करना पड़ा। हालांकि उन्हें कई लोगों का और अलग-अलग देशों से भी सपोर्ट मिला। भारत सरकार उनके लिए वीजा आसानी से उपलब्ध करा देती है। एक बार सरकार से 50 हजार रुपए की मदद मिली है। कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी उनकी हेल्प की है। इसके साथ ही सोमेन जहां भी जाते हैं वहां कैम्पेन करके कुछ फंड जुटा लेते हैं। कई सिविलियन भी उनके लिए फंड और खाने-पीने की व्यवस्था करते हैं।
सोमेन को प्रकृति से भी गहरा लगाव है। वे जहां भी जाते हैं वहां प्लांटिंग भी करते हैं।