अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से पैदल चलें तो करीब 550 मीटर दूर जलियांवाला बाग है। 13 अप्रैल 1919 की शाम यहां अंग्रेजों के एक्टिंग ब्रिग्रेडियर जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर के 50 जवानों ने दीवारों से घिरे इसी मैदान में अपना पूरा गोलाबारूद निहत्थे भारतीयों पर खाली कर दिया था।
हंटर जांच आयोग के सामने डायर ने कबूला -उसके सिपाहियों ने 10 मिनट के भीतर ली एन्फील्ड .303 बोल्ट एक्शन राइफलों से 1650 गोलियां दाग दीं। सही गिनती का आज तक नहीं पता, मगर अंदाज के मुताबिक इस नरसंहार में 379 से 1000 निहत्थे लोग मारे गए थे। इनमें महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग भी थे।
अंग्रेज यहीं नहीं रुके। अगले दिन यहां से करीब 90 किमी दूर गुजरांवाला में अंग्रेज वायुसेना के तीन विमानों ने दो गांवों और एक हाई-स्कूल पर बमबारी कर दी। इन विमानों ने नरसंहार का विरोध करने निकले जत्थों पर मशीनगन की गोलियां दागीं।
सही मौत का आंकड़ा तो यहां भी पता नहीं चला, लेकिन तब गुजरांवाला के ब्रिटिश डिप्टी कमिश्नर (DC) कर्नल एजे ओ ब्रायन ने पंजाब के लेफ्टिनेंट गर्वनर माइकल ओ ड्वायर को भेजे संदेश में बताया था कि इन हमले में 11 लोग मारे गए और 27 घायल थे। 1947 में बंटवारे के बाद से गुजरांवाला पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का एक शहर है।
बैसाखी का माहौल था, पूरे पंजाब हो रहा था रॉलेट एक्ट तीखा विरोध
उन दिनों पंजाब समेत पूरे उत्तर भारत में रॉलेट एक्ट का भारी विरोध चल रहा था। वो बैसाखी का दिन का था। लोग हर साल वहां जमा होते थे। इस बार विरोध भी करना था, सो धीरे-धीरे मैदान में करीब 20 हजार लोग जमा हो गए।
घबराई ब्रिटिश सरकार पंजाब में पहले ही मार्शल लॉ लगा चुकी थी। मेला क्या, लोगों के घर से निकलने पर पाबंदी थी। जैसे ही जलियांवाला बाग में भीड़ जमा होने की खबर ब्रिग्रेडियर जनरल डायर तक पहुंची उसने अपने सिपाहियों के साथ बाहर का रास्ता घेरकर नरसंहार कर दिया।
14 अप्रैल, 1919 की सुबह जलियांवाला से 90 किमी गुजरांवाला तक सैकड़ों बेकसूरों के कत्लेआम की यह खबर पहुंच गई। पहले से गरम गुजरांवाला उबल पड़ा। सुबह करीब 7 बजे रेलवे स्टेशन के पास मरा हुआ बछड़ा लटका मिला। पूरे शहर में चर्चा में फैल गई कि पुलिस ने हिंदू मुसलमानों को लड़ाने के लिए ऐसा किया है।
आनन-फानन में तब के डिप्टी एसपी चौधरी गुलाम रसूल मौके पर पहुंचे और उन्होंने बछड़े को दफन करा दिया। नाराज भीड़ ने सरकारी बिल्डिंग, रेलवे स्टेशन, पोस्ट ऑफिस को निशाना बनाना शुरू कर दिया। दिन-भर जलियांवाला कांड के विरोध में प्रदर्शन होते रहे। तभी अंग्रेजों ने अपने साम्राज्य को बचाने में वायुसेना के विमानों को लगाने का फैसला किया।
जनरल डायर ने ही बम गिराने का आदेश दिया
जनरल डायर ने आदेश दिया तो पहले विश्वयुद्ध में हिस्सा ले चुका कैप्टन डीएचएम कारबेरी अपनी अगुवाई में स्क्वाड्रन नंबर 31 के तीन BE2c बम वर्षकों के साथ गुजरांवाला के आसमान पर उड़ान भरने लगा। यह तीनों विमान लाहौर से उड़े थे।
सबसे पहले दुल्ला गांव पर गिराए तीन बम
उसने सबसे पहले गुजरांवाला के गांव दुल्ला पर 20-20 पाउंड के तीन बम गिराए। इनमें से एक बम फटा नहीं। इसके बाद गुजरांवाला की ओर जाते करीब 150 लोगों पर विमान की मशीनगन से 50 राउंड गोलियां दागीं। अंग्रेजी रिकॉर्ड के मुताबिक इस हमले में एक महिला और लड़की की मौत हो गई और दो लोग घायल गए।
दूसरे गांव घरजाख पर गिराए दो बम
कुछ मिनट बाद पास के ही दूसरे गांव घरजाख पर दो बम गिराए। वहीं करीब 50 लोगों की भीड़ पर मशीनगन से 25 राउंड फायर किए गए। अंग्रेजों के दस्तावेजों के मुताबिक इस हमले में कोई मारा नहीं गया।
तीसरी बार हाई-स्कूल के अहाते में बम गिराया
इसके बाद गुजरांवाला में खालसा हाई-स्कूल और बोर्डिंग हाउस में जमा 200 भारतीयों को देखकर उसके अहाते में एक बम गिराया गया। इन पर विमान की मशीनगन से 30 राउंड गोलियां भी चलाई गईं। यहां भी कई लोग मारे गए और कई घायल हुए थे।
पायलट बोला-ऊंचाई से कोई निर्दोष भारतीय नहीं दिखा
वहीं, विमानों की अगुवाई कर रहे कैप्टन कारबेरी ने तब कहा था- गुजरांवाला में 200 फीट की ऊंचाई से उन्हें कोई भी निर्दोष भारतीय नहीं दिखाई दिया, इसलिए उन्होंने मशीनगन का इस्तेमाल किया।
भारतीयों को आज भी माफी का इंतजार
1920 में हाउस ऑफ कॉमन्स यानी ब्रिटेन की लोकसभा में जलियांवाला पर चर्चा के दौरान उस समय के युद्ध मंत्री विंस्टन चर्चिल ने कहा था- यह एक असाधारण घटना है। एक राक्षसी घटना है। यह एक ऐसी घटना जो भयावह और अपने आप में अकेली है। लेकिन तब के ब्रिटिश नेताओं की तरह चर्चिल ने भी घटना के लिए माफी नहीं मांगी।
अप्रैल 2019 को जलियांवाला बाग कांड के 100 साल पूरे होने पर हाउस आफ कॉमन्स में तब की ब्रिटिश PM थेरेसा मे ने इस नरसंहार को ब्रिटिश-भारतीय इतिहास का शर्मनाक धब्बा तो बताया और अफसोस भी जाहिर किया, लेकिन माफी नहीं मांगी।
इससे पहले 2013 में उस समय के ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने भी जलियांवाला बाग में श्रद्धांजलि दी और सिर्फ इतना कहा कि घटना बेहद शर्मनाक थी। बाद में उन्होंने कहा कि मुझे यह ठीक नहीं लगता कि हम इतिहास में लौटकर माफी मांगने के लिए चीजों को तलाशें।
1997 में महारानी एलिजाबेथ ने जलियांवाला में 30 सेकंड की मौन श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने अपने जूते उतारकर गुलाबी ग्रेनाइट के बने स्मारक पर फूल भी अर्पित किए। इसके बाद एक भोज में उन्होंने नरसंहार को अतीत का एक परेशान करने वाला अध्याय भी बताया, लेकिन इसके बाद वह भी रुक गईं।