अमेरिका के खिलाफ रूस की कूटनीतिक चाल से गिरा है क्रूड, इसलिए उत्पादन कटौती का समझौता होने और भाव में जल्द सुधार के आसार नहीं

Posted By: Himmat Jaithwar
4/6/2020

नई दिल्ली.. कच्चे तेल के भाव में जल्द तेजी आने के आसार नहीं दिख रहे। क्योंकि ताजा घटनाक्रम इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि क्रूड के भाव के गिरकर 18 साल के निचले स्तर पर आ जाने का मूल कारण प्राइस वार नहीं बल्कि प्राइस वार के बहाने अमेरिका को झुकाने का है। रूस ने संकेत दिया है कि वह वेनेजुएला की राजनीति में अमेरिका के हस्तक्षेप से नाराज है और वह वेनेजुएला के साथ तेल सहयोग पर कायम है। समीकरण इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि जब तक अमेरिका वेनेजुएला के तेल संपत्तियों पर से पाबंदी नहीं हटा लेता, तब तक रूस क्रूड के भाव में बढ़ोतरी नहीं होने देगा और इसलिए वह तब तक उत्पादन कटौती के लिए सऊदी अरब से समझौता भी नहीं करेगा।


तेल का भाव गिरने के बाद बचाव की मुद्रा में दिख रहा है अमेरिका
तेल का भाव कम रहने से सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिकी कंपनियों को हो रहा है और कई अमेरिकी कंपनियों के कंगाल हो जाने की आशंका पैदा हो गई है। इसलिए अमेरिका क्रूड आयात पर शुल्क लगाने के विकल्प पर भी विचार कर रहा है। इससे स्पष्ट दिख रहा है कि अमेरिका बचाव की मुद्रा में आ गया है। हाल में अमेरिका के राष्ट्र्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सऊदी अरब और रूस के बीच प्राइस वार को खत्म करने की कोशिशें भी की हैं। लेकिन अमेरिकी मध्यस्थता से सऊदी अरब और रूस के बीच उत्पादन कटौती का समझौता हो जाने की उम्मीद में कच्चे तेल के भाव में जो तेजी दिखी है, वह अधिक समय तक टिक पाने की उम्मीद नहीं है। ट्रंप ने अमेरिका में क्रूड के आयात पर शुल्क लगाने का जो संकेत दे दिया है, उससे दुनिया के अन्य हिस्से में कच्चे तेल की आपूर्ति बढ़ जाएगी। कोरोनावायरस के कारण दुनियाभर में कच्चे तेल की मांग घटी हुई है। ऐसे में तेल की आपूर्ति बढ़ने से समीकरण और खराब होगा और कच्चे तेल के भाव में और गिरावट आ सकती है।


वेनेजुएला में अमेरिकी दखलंदाजी के खिलाफ है रूस
वेनेजुएला में रूस के एंबेसेडर सर्गेई मेलिक बग्दासरोव ने एक साक्षात्कार में कहा कि मुद्दा तेल उत्पादन ज्यादा होने का नहीं है, बल्कि वेनेजुएला के तेल निर्यात पर अमेरिका की ओर से लगाए गए शर्मनाक प्रतिबंध का है। यह पाबंदी कोरोनावायरस की महामारी का बिना कोई खयाल रखे लगाई गई है। जबकि जंगल में भी यह अलिखित नियम होता है कि सूखे के दिनों में जलाशयों के आसपास एक जानवर दूसरे जानवरों पर हमला नहीं करते। वेनेजुएला एंगल का पता इस बात से भी चलता है कि गुरुवार को वेनेजुएला के लिए अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि इलियट अब्राम्स ने कहा था कि वेनेजुएला के मामले में अमेरिका रूस से संपर्क बनाए हुए है।


वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोला मदुरो को हटाकर दूसरी सरकार बनाना चाहता है अमेरिका
वेनेजुएला में राष्ट्र्रपति निकोला मदुरो की सरकार को हटाकर अमेरिका एक अंतरिम सरकार बनाना चाहता है, जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के सदस्य हों। अपनी बात मनवाने के लिए अमेरिका ने वेनेजुएला पर प्रतिबंध लगा रखा है। जनवरी में वेनेजुएला के विपक्षी नेता जुआन गुइडो ने खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया था। अमेरिका व कई अन्य देशों ने उसका समर्थन किया है और अमेरिका ने वर्तमान राष्ट्रपति निकोला मदुरो से इस्तीफा देने की मांग की है। इसके साथ ही अमेरिका ने वेनेजुएला के कई अधिकारियों पर पाबंदियां भी लगा दीं। अमेरिका ने वेनेजुएला की राष्ट्रीय तेल कंपनी पीडीवीएसए और उसकी सहयोगी कंपनियों की 7 अरब डॉलर की संपत्तियां भी ब्लॉक कर दी। दूसरी तरफ मौजूदा राष्ट्रपति मदुरा को रूस और चीन सहित कई अन्य देशों का समर्थन हासिल है।


क्रूड में पहले से चल रही गिरावट का रूस ने अपने हिसाब से लाभ उठाया
सभी स्थितियों को देखने पर ऐसा लगता है कि कोरोनावायरस के कारण मांग घटने से क्रूड में पहले से ही चल रही गिरावट का रूस ने अमेरिका को झुकाने के लिए लाभ उठाया। कोरोनावायरस के कारण मांग घटने से क्रूड करीब 70 डॉलर से गिरकर 6 मार्च को करीब 45 डॉलर का रह गया था। इसी वक्त उत्पादन को लेकर ओपेक, रूस व अन्य तेल उत्पादक देशों का पुराना समझौता मार्च के आखिर में एक्सपायर कर रहा था। इस बीच मार्च के बाद के लिए तेल उत्पादक देशों में फिर से बैठक हुई। माना जा रहा था कि ये देश उत्पादन घटाकर कीमत बढ़ाने का फैसला करेंगे। लेकिन रूस ने भांप लिया कि यदि वह उत्पादन नहीं घटाता, तो तेल कीमत और गिरेगी और अमेरिका की शेल ऑयल कंपनियों का दिवाला निकल जाएगा। इससे अमेरिका दबाव में आएगा।


रूस का पैंतरा काम कर गया, 45 से गिरकर 22 डॉलर तक आया ब्रेंट क्रूड
ओपेक प्लस की बैठक में रूस ने कीमत सुधारने के लिए उत्पादन घटाने से इन्कार कर दिया। इसके बाद सऊदी अरब की तरफ से प्राइस वार शुरू हो गया और 9 मार्च को ब्रेंट क्रूड करीब 45 डॉलर से गिरकर करीब 34 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया। यह बाद में और गिरते हुए 31 मार्च को करीब 22 डॉलर पर आ गया। कोरोनावायरस के कारण रूस को इससे अच्छा मौका फिर शायद कभी नहीं मिलता। अमेरिकी कंपनियों के नुकसान से रूस के साथ सऊदी अरब को भी फायदा होना तय है। शैल कंपनियों के कारण अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा क्रूड उत्पादक देश बन बैठा है। इससे सऊदी अरब और रूस की दादागिरी क्रूड के अंतरराष्ट्रीय बाजार में घटी है। माना जा रहा है कि क्रूड के भाव में गिरावट के कारण अमेरिका की कई क्रूड कंपनियां दिवालिया हो जाएंगी। इससे क्रूड के अंतरराष्ट्रीय बाजार में सऊदी अरब और रूस को अपनी पुरानी दादागिरी को बरकरार रखने तथा बाजार हिस्सेदारी को और बढ़ाने का अवसर मिल जाएगा।


अमेरिका में क्रूड पर आयात शुल्क लगने से और गिरेगा क्रूड का अंतरराष्ट्र्रीय भाव
इस बीच अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार को व्हाइट हाउस की ओर से जारी किए गए एक बयान में कहा कि यदि जरूरी हुआ तो अमेरिका के एनर्जी सेक्टर को और उसके कामगारों का रोजगार बचाने के लिए वह क्रूड के आयात पर शुल्क लगाएंगे। ट्रंप ने शुक्रवार को अमेरिकी तेल कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक बैठक में ताजा हालत का जायजा लिया था। तेल कीमतों में भारी गिरावट से अमेरिकी तेल कंपनियां काफी बुरे दौर से गुजर रही हैं।


अमेरिका की कई कंपनियां ग्राहकों को क्रूड ले जाने के लिए दे रही हैं पैसा
पहले ही मनी भास्कर की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि अमेरिका मे क्रूड की कई श्रेणियों के भाव 10 डॉलर प्रति बैरल से नीचे चल रहे हैं। कुछ क्रूड के भाव तो शून्य से भी नीचे आ गए हैं। इसका मतलब यह है कि उन क्रूड को रखने के लिए कंपनियों के पास जगह नहीं बची है। इसलिए संबंधित कंपनियां खरीदार को मुफ्त में भी क्रूड दे रही हैं और उन्हें क्रूड ले जाने के लिए अतिरिक्त पैसे भी दे रही हैं। आयात शुल्क एक ऐसे टूल होता है, जिससे देश में संबंधित कमोडिटी की खपत और आयात को हतोत्साहित किया जाता है। अमेरिका यदि क्रूड के आयात पर शुल्क लगाने का फैसला करता है, तो ओपेक सदस्य देशों और रूस के क्रूड की मांग अमेरिका में और घट जाएगी, जिससे अंतरराष्ट्र्रीय बाजार में इनके क्रूड की आपूर्ति और बढ़ जाएगी। इससे क्रूड की अंतरराष्ट्रीय कीमत और गिरेगी।


उत्पादन कटौती पर सहमति नहीं बनने से 10 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे गिर सकता है क्रूड का भाव
ऑयल प्राइस डॉट कॉम की एक रिपोर्ट (https://oilprice.com/Energy/Energy-General/The-OPEC-Meeting-Could-Send-Oil-Prices-Crashing-Below-10.html ) के मुताबिक सऊदी अरब और रूस के बीच यदि तेल उत्पादन घटाने पर सहमति नहीं बनी तो क्रूड का भाव 10 डॉलर प्रति बैरल के भी नीचे गिर सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बाजार में दिख रहा उतार-चढ़ाव, बाजार हिस्सेदारी के लिए विभिन्नन देशों में जंग, अमेरिका द्वारा सुझाई गई उत्पादन कटौती को अमल में लाने की अक्षमता और कोरोनावायरस के कारण मांग में गिरावट कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिनका समाधान बैठक में नहीं किया जा सकता है। पिछले दिनों अमेरिका के राष्ट्र्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक ट्वीट में कहा था कि सऊदी अरब और रूस उत्पादन में 1 करोड़ बैरल रोजाना से ज्यादा की कटौती के लिए तैयार हो सकते हैं।


2 करोड़ बैरल रोजाना की घट चुकी है मांग, सिर्फ 1 करोड़ बैरल की उत्पादन कटौती काफी नहीं होगी
विभिन्न अनुमानों के मुताबिक दुनियाभर में कोरोनावायरस संक्रमण से कारोबारी गतिविधियां बंद होने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में 2 करोड़ बैरल रोजाना से ज्यादा की मांग घटी हुई है। संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए करीब आधी दुनिया में लॉकडाउन चल रहा है। इसलिए 1 करोड़ बैरल रोजाना की कटौती से कीमत नहीं सुधरने वाली है। उल्टे इतनी कटौती से बाजार में नकारात्मक प्रतिक्रिया ही दिखेगी। यदि इस कटौती से तेल की कीमत स्थायी तौर पर नहीं सुधरी, तो बाजार में भय का माहौल ऐतिहासिक उच्च स्तर तक पहुंच सकता है और इससे क्रूड की कीमत आने वाले सप्ताह में गिरकर 10 डॉलर प्रति बैरल से नीचे भी जा सकती है।


कोरोनावायरस और प्राइस वार से 18 साल के निचले स्तर तक गिर चुका है क्रूड
कोरोनावायरस के कारण कच्चे तेल का भाव में हाल में काफी गिरावट देखी गई है। ओपेक और रूस के बीच उत्पादन कटौती का समझौता नहीं हो पाने और प्राइस वार शुरू हो जाने के कारण क्रूड में और गिरावट आई और इसने 31 मार्च को करीब 18 साल का निचला स्तर (करीब 22 डॉलर प्रति बैरल) को छू लिया था। हालांकि ओपेक, रूस व अन्य क्रूड उत्पादक देशों के बीच उत्पादन कटौती पर कोई समझौता हो जाने की उम्मीद से पिछले कुछ दिनों में क्रूड का भाव चढ़ा है। ब्रेंट क्रूड शुक्रवार को करीब 34 डॉलर प्रति बैरल पर बंद हुआ।



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