बीते दो विधानसभा चुनाव में भले ही मिली कांग्रेस को हार लेकिन लगातार बढ़ रहा जनाधार
रतलाम। विधानसभा चुनाव वर्ष 2023 की तैयारियों का दौर शुरू हो चुका है। कांग्रेस में भी टिकट की दावेदारी को लेकर पूर्व महापौर पारस सकलेचा और वर्तमान में महापोर प्रत्याशी रहे मयंक जाट के बीच जोरदार टक्कर मानी जा रही है। टक्कर हो भी क्यों ना क्योंकि एक तरफ पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह है तो दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ है।
आने वाले विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो पारस सकलेचा को दिग्विजय सिंह की तरफ से विधायक पद का दावेदार माना जा रहा है तो दूसरी ओर मयंक जाट को कमलनाथ की ओर से टिकट का मुख्य दावेदार माना गया है। दरअसल दोनों ही नेताओं ने अपने पद और अपने कद को लेकर पूर्व में हुए चुनाव में जोरदार दावेदारी भी की है।
दरअसल पारस सकलेचा एक बार पूर्व महापौर के पद पर रह चुके हैं, तो दूसरी बार विधानसभा चुनाव लड़कर भाजपा से पूर्व गृहमंत्री हिम्मत कोठारी को 31000 मतों से हरा चुके हैं, हालांकि 5 साल विधायक रहने के बाद उनका यह चुनाव शून्य घोषित हो गया है लेकिन इस बार फिर से उनकी सक्रियता को देख वर्ष 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में उनको दावेदार के रूप में देखा जाने लगा है।
वर्ष 2008 के चुनाव की बात करें तो कांग्रेस को महज 4465 वोट मिले थे जोकि प्रतिशत के मान से 4.34% है। वर्ष 2013 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस की ओर से मजबूत दावेदार के रूप में अदिति दवेसर को टिकट दिया गया, जिसका लाभ यह रहा कि कांग्रेस का वोट बैंक बढ़कर 35879 पर पहुंच गया जो कि प्रतिशत के मान से 27.17 प्रतिशत है। इसके बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से दमदार दावेदार के रूप में प्रेमलता देवी को टिकट दिया। इस बार कांग्रेस 48551 वोट मिले जोकि प्रतिशत के मान से सर्वाधिक 33.60% रहा। इस तरह लगातार कांग्रेस का वोट बैंक बढ़ता जा रहा है।
कांग्रेस के लगातार बढ़ते वोट बैंक से भाजपा की जीत पर असर नजर आने लगा है। बीते माह में हुए रतलाम नगर निगम के चुनाव में कांग्रेस से महापौर प्रत्याशी रहे मयंक जाट ने भाजपा प्रत्याशी प्रहलाद पटेल को जोरदार टक्कर। पहली बार भाजपा का वोट बैंक इतना कम रहा कि महज 8000 वोट से भाजपा के महापौर चुने गए, जबकि हर बार भाजपा की जीत का अंतर 20,000 से अधिक रहता है। इस बार भी भाजपा प्रत्याशी की जीत का सिरमौर विधायक चैतन्य काश्यप रहे। यदि वह अंतिम दौर में मैदान में नहीं आते तो संभवतः भाजपा को नगर निगम चुनाव में हार का सामना करना पड़ सकता था।