इंदौर. कोरोना जैसी महामारी से इंदौर इससे पहले तीन बार जूझ चुका है। 1881, 1897 और 1901 से 1911 के बीच। 1881 में जो बीमारी आई थी, उसके कारण 109 लोग बीमार हुए थे। इनमें से 52 की मौत हो गई। 1897 में ग्रंथिक ज्वर की बीमारी फैली। उसका खौफ व असर बहुत कुछ कोरोना जैसा ही था। बीमारी फैलने के बाद होलकर स्टेट के सर्जन का एक सख्त आदेश जारी हुआ, जिसमें लोगों के लिए कड़ी हिदायतें थीं। वह लगभग वैसी ही थीं, जैसी आज हैं। उस समय स्टेट सर्जन की तरफ से बालकृष्ण आत्माराम गुप्ते ने सख्त दिशा-निर्देश जारी किए थे।
1903 के बाद कई बार बाजार, स्कूल, कॉलेज, दफ्तर बंद
शहर में 1901 से 1911 के बीच कई बीमारियां फैलीं। 1903 के बाद कई बार बाजार, स्कूल, कॉलेज, दफ्तर बंद हो गए। 1901 में इंदौर की आबादी करीब 87 हजार थी, जो 1911 में 44 हजार 947 रह गई। इन 10 सालों में करीब साढ़े 22 हजार लोगों की मौत हुई थी। इतने ही पलायन कर गए थे। यह इंदौर के इतिहास का सबसे बड़ा पलायन था।
1897 में ग्रंथिक ज्वर के वक्त सख्ती ऐसी : जिसके घर में दुर्गंध, उस पर कार्रवाई का प्रावधान
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ग्रंथिक ज्वर से पीड़ित बाहर से आने वाले व्यक्ति को कोई अपने घर में रुकवाएगा तो उसे सजा मिलेगी।
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कोई भी बीमार मिलेगा तो उसे पुलिस के जरिए नए बने टापरे (कच्चा घर) में रुकवाया जाएगा।
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इस ग्रंथिक ज्वर की पैदाइश दुर्गंध से होती है। इसलिए किसी को अपने घर के आसपास गंदगी व दुर्गंध नहीं रहने देना चाहिए। जिसके मकान में बदबू मिलेगी, उसे कोतवाली पहुंचाया जाएगा व कानूनी कार्रवाई होगी।
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15 फरवरी 1897 से 15 दिन के भीतर सभी लोग अपने घर को चूने से पुतवाएंगे।
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दुकानदार सड़ा व बासी माल न रखें। सड़े फल शहर में बेचने नहीं दिए जाएंगे।
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घर में कीचड़, गीलापन, सीलन हो तो वहां मिट्टी को जलाकर सूखा होगा। फिर पीली मिट्टी भरकर हीराकस्सी घोला हुआ पानी छींटना होगा। कली का चूना फैलाना होगा।
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रेलवे स्टेशन पर आने वाले लोगों के लिए एक डॉक्टर मुकर्रर किया है, उससे कोई तकरार नहीं करें।