भोपाल। लोग ठोकर खाकर सीखते हैं। कोशिश करते हैं कि जिन परिस्थितियों ने जीवन में तनाव पैदा किया वैसी परिस्थितियां फिर से ना आए लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया शायद इस परंपरा के नेता नहीं है। सिंधिया एक बार फिर उसी ट्रैक पर चल पड़े हैं जिस पर 3 महीने पहले उन्होंने जिंदगी की सबसे बड़ी ठोकर खाई है। एक बड़ा प्रश्न यह भी है कि यदि इस बार ठोकर खाएंगे, तो कहां जाएंगे।
ज्योतिरादित्य सिंधिया पर सवाल उठ रहे हैं
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भारतीय जनता पार्टी को ज्वाइन करते समय दृढ़ता पूर्वक दोहराया था कि वह जन सेवा के लिए राजनीति करते हैं और कांग्रेस में जन सेवा करने का अवसर नहीं बचा। इत्तेफाक से भारत देश इन दिनों अपने सबसे बड़े संकट से जूझ रहा है और ज्योतिरादित्य सिंधिया 'जनसेवा' नहीं कर रहे हैं। देशभर के सांसदों ने अपने-अपने क्षेत्रों के लोगों के लिए दिल्ली में अपने सरकारी आवास खोल दिए लेकिन 20000 करोड़ की संपत्ति के मालिक ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दिल्ली में फंसे मध्य प्रदेश के 200 लोगों को भोजन के पैकेट तक नहीं दिए मुख्यमंत्री राहत कोष में 30,000,00 रुपए देने की बात जरूर की परंतु अब तक फंड ट्रांसफर नहीं हुआ है। लोग पूछ रहे हैं कि जब फंड ट्रांसफर नहीं हुआ था तो ढिंढोरा पीटने की जरूरत क्या थी। 4 आईएएस अफसरों का अपने हिसाब से तबादला करा लेने का मतलब राजनीति में 'महाराज' हो जाना नहीं होता। यही वक्त है या तो खुद को जनसेवक साबित करें, अन्यथा जनता क्या करती है 2019 में बता चुकी है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कौन सी पुरानी गलती दोहराई
ज्योतिरादित्य सिंधिया को यह समझना चाहिए कि भले ही उनके पास कितने भी विधायकों का समर्थन हो लेकिन वह किसी संवैधानिक पद पर ना तो पहले थे और ना ही अब हैं। पहले भी वह सरकारी कामकाज में सीधे दखल दे रहे थे। यही कारण था कि कमलनाथ के साथ उनकी तनातनी शुरू हुई थी। एक बार फिर उन्होंने सरकारी काम में सीधा दखल देना शुरू कर दिया है। आज उन्होंने मुरैना और ग्वालियर के कलेक्टरों को ना केवल निर्देशित किया बल्कि लोगों को बताया कि उन्होंने कलेक्टरों को निर्देशित किया है। सवाल फिर वही उपस्थित होता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किस हैसियत से कलेक्टरों को निर्देशित किया है। यदि इस तरह हस्तक्षेप का अधिकार सभी को दिए जाने लगा तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभागीय संगठन मंत्री से लेकर सरसंघचालक तक सब के सब सीधे कलेक्टर को निर्देशित करने लग जाएंगे। क्योंकि आरएसएस का प्रत्येक संगठन मंत्री किंग मेकर होता है। मध्यप्रदेश में कुछ तो ऐसे हैं जिनके पास 40 से ज्यादा विधायक हैं।
तो फिर क्या करना चाहिए था
ज्योतिरादित्य सिंधिया को चाहिए था कि वह ट्विटर पर कुछ इस तरीके से लिखते 'हमारे मध्य प्रदेश के मुरैना और ग्वालियर शहरों में राजधानी दिल्ली और उत्तर प्रदेश से आ रहे तमाम लोगों को कैंप कराया जा रहा है। इस संबंध में मैंने मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह जी से आग्रह किया है कि आने वाले सभी लोगों के स्वास्थ्य, भोजन एवं रहने की समुचित व्यवस्था कराने हेतु दोनों जिलों के कलेक्टरों को निर्देशित करें।' इन शब्दों में ज्योतिरादित्य सिंधिया का बड़प्पन नजर आता। 'मैंने दोनों जिलों के कलेक्टर को निर्देश दिए हैं' यह वाक्य ज्योतिरादित्य सिंधिया का न केवल कद घटाता है बल्कि उन्हें एक अहंकारी एवं सत्ता के प्रति मोहित नेता बताता है।
ज्योतिरादित्य ने भाजपा पर उपकार नहीं किया, भाजपा ने सिंधिया की लाज बचाई है
मध्य प्रदेश में हुए सत्ता परिवर्तन को कुछ इस तरह से प्रस्तुत किया गया मानो ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने विधायकों का इस्तीफा करा कर भारतीय जनता पार्टी पर कोई उपकार किया है जबकि इसका एक दूसरे एंगल यह भी है कि भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पार्टी में बार-बार जलील हो रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया की लाज बचाई है।