राजधानी में कोरोना की दस्तक 4 महीने 4 दिन पहले 22 मार्च को हुई थी। अब शहर में मरीजों का आंकड़ा 5500 के पार पहुंच गया है। इन चार महीनों में कोरोना से निपटने के लिए प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने तमाम तरीके अपनाए और जरूरत के हिसाब से इनमें बदलाव भी किए। सर्वे से लेकर सैंपलिंग और कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग से लेकर कंटेनमेंट तक हर प्रक्रिया का प्रोटोकॉल अब बदल चुका है।
सर्वे
पहले - मरीज के घर को एपीसेंटर मानते हुए चारों ओर के एक हजार घरों में सर्वे किया जाता था। 200 टीमों की मदद से यह सर्वे तीन से चार दिन में होता था। अब - सर्वे का दायरा सीमित करके मरीज के आसपास के कुल पांच घरों का सर्वे किया जाता है। ऐसे में एक क्षेत्र में एक टीम को एक दिन में सर्वे करना होता है।
हॉस्पिटल
पहले - मरीज को सीधे कोविड अस्पताल में भर्ती किया जाता था। चाहे उसे लक्षण हो या न हों। गंभीर मरीजों वाले अस्पताल में ही कम लक्षण वाले मरीज भी भर्ती होते थे। अब - गंभीर मरीजों को डेडिकेटेड कोविड अस्पताल में, कम गंभीर मरीजों को डेडिकेटेड कोविड हेल्थ सेंटर में और बिना लक्षण वाले पॉजिटिव को कोविड केयर सेंटर में रखते हैं।
क्वारेंटाइन सेंटर
पहले - शुरुआत में जब बहुतायत में पॉजिटिव मरीज मिले तो उस क्षेत्र के रहवासियों को होटलों समेत स्कूल और कॉलेजों में क्वारेंटाइन किया गया था। अब - एडवांस मेडिकल कॉलेज, मैनिट, आइसर, श्रमोदय विद्यालय समेत अलग-अलग इलाकों में 12 से ज्यादा सेंटर बनाकर क्वारेंटाइन किया जा रहा है।
सैंपलिंग
पहले - किसी व्यक्ति क कोरोना पॉजिटिव पाए जाने पर उसके संपर्क में आने वाले लोगों के सैंपल पहले दिन ही ले लिए जाते थे।
अब - हाई रिस्क और लक्षण नजर आने वालों के सैंपल 24 से 48 घंटे में जबकि बाकी लोगों के सैंपल हफ्तेभर बाद लिए जाते हैं।
डिस्चार्ज
पहले - ठीक होने वाले मरीज को छुट्टी देने से पहले 24 घंटे के अंतर पर दो बार टेस्ट कराया जाता था। दोनों रिपोर्ट निगेटिव आने पर छुट्टी दी जाती थी।
अब - कम से कम एक हफ्ते भर्ती रखना जरूरी है। सारे पैरामीटर सामान्य होने पर एक टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आने पर छुट्टी दे दी जाती है।
होम आइसोलेशन
पहले - शुरुआत में होम आइसोलेशन के लिए कोई तैयार नहीं था और न ही प्रशासन ने इस पर जोर दिया था। ऐसे में एक-दो मरीज ही होम आइसोलेशन में रहते थे। अब - कोविड केयर सेंटर में मरीजों की संख्या बढ़ने से लोग होम आइसोलेशन को तवज्जो दे रहे हैं। खासकर माइल्ड सिम्पटम वाले मरीज होम आइसोलेशन में रह रहे हैं।
काॅन्टैक्ट ट्रेसिंग
पहले - टीबी प्रोग्राम के कर्मचारियों की अगुवाई में 30 टीमें काम कर रही थीं। मरीज से फोन पर मिलकर संपर्क में आए लोगों की सूची बनाकर उनसे मिलकर जानकारी लेते थे।
अब - मरीजों की संख्या बढ़ने से आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भी इस काम में शामिल किया गया है। अब 90 टीमें सीधे संपर्क में आए लोगों का रिकॉर्ड तैयार करती हैं।
कंटेनमेंट
पहले - जिस घर में कोरोना पॉजिटिव मरीज मिलता था, उस घर से 500 मीटर के दायरे को कंटेनमेंट एरिया घोषित करके इस इलाके की पूरी तरह बैरिकेडिंग कर दी जाती थी। अब - जिस घर में कोरोना पॉजिटिव मरीज मिलता है सिर्फ उसी की बैरिकेडिंग की जाती है। किसी इलाके या गली में ज्यादा मरीज मिलने पर व्यावाहारिक तरीके से बैरिकेडिंग की जाती है।