चीन जिस प्रकार से अपने राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों को हांगकांग पर थोपता जा रहा है, उससे दुनियाभर के बैंकर्स और निवेशकों को लगता है कि एक अंतरराष्ट्र्रीय वित्तीय केंद्र के रूप में हांगकांग का भविष्य खतरें में है। और यदि हांगकांग का भविष्य खतरें में पड़ेगा, तो खुद चीन को ही बहुत भारी आर्थिक नुकसान हो सकता है। यहां हम देखते हैं कि हांगकांग की स्वायत्तता को कायम रखना चीन के लिए क्यों जरूरी है और हांगकांग में चीन का कितना कुछ दांव पर लगा हुआ है।
चीन को वैश्विक पूंजी हासिल करने में सबसे ज्यादा मदद करता है हांगकांग
चीन अभी भी पूंजी पर अत्यधिक नियंत्रण की नीति पर चलता है। वह अपने वित्तीय बाजारों और बैंकिंग प्रणालियों में हस्तक्षेप करता रहता है। दूसरी ओर हांगकांग दुनिया की दूसरी सर्वाधिक खुली अर्थव्यवस्था है। साथ ही हांगकांग इक्विटी और डेट फाइनेंसिंग के लिए सबसे बड़ा चैनल भी है। रायटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक मेनलैंड चीन के मुकाबले हांगकांग की अर्थव्यवस्था महज 2.7 फीसदी है, लेकिन विश्व स्तरीय वित्तीय और कानूनी व्यवस्था के कारण हांगकांग चीन के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है। 1997 में जब हांगकांग चीन के कब्जे में आया था तब मेनलैंड चीन की तुलना में उसकी अर्थव्यवस्था 18.4 फीसदी के बराबर थी। चीन और पश्चिमी देशों के बीच हांगकांग एक गेटवे का काम करता है। चीन को वैश्विक पूंजी हासिल करने में हांगकांग से जितनी मदद मिलती है, उतनी मदद अपने किसी अन्य शहर से नहीं मिलती।
स्वायत्तता घटने से खत्म हो सकता है हांगकांग का विशेष दर्जा
हांगकांग पहले ब्रिटेन का उपनिवेश था। उसने 1997 में इसे चीन को सौंप दिया था। उस वक्त उसका चीन के साथ एक समझौता हुआ था। समझौते में चीन ने एक देश-दो प्रणाली अपनाने का वादा किया था। इसके तहत उसने कहा था कि वह अगले 50 साल तक हांगकांग में खुली अर्थव्यवस्था को बनाए रखेगा। इस समझौते के तहत हांगकांग को ऐसी-ऐसी आजादी मिली हुई है, जो मेनलैंड चीन में नहीं मिली हुई है। उदाहरण के तौर पर हांगकांग में अभिव्यक्ति की आजादी और स्वतंत्र न्यायपालिका है, जो चीन में नहीं है। इन आजादी के कारण हांगकांग को विशेष अंतरराष्ट्र्रीय दर्जा हासिल है। उदाहरण के तौर पर अभी चीन के आयात पर जो शुल्क अमेरिका में लगते हैं, वे शुल्क हांगकांग से होने वाले आयात पर नहीं लगते। अब हालांकि अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने इस विशेष दर्जे को समाप्त करने का सुझाव दिया है, क्योंकि वह मानता है कि हांगकांग की स्वायत्तता अब काफी घट गई है। यदि विशेष दर्जा समाप्त हो जाता है, तो हांगकांग के व्यापार, फाइनेंस और निवेश जैसे कई पहलुओं पर इसका असर दिखेगा। ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा, यूरोपीय संघ और कई अन्य देशों ने भी हांगकांग पर चीन के कानूनों को थोपे जाने को लेकर चिंता जताई है।
हांगकांग में चीन और दुनिया दोनों का काफी कुछ लगा हुआ है दांव पर
चीन विदेशी फंड हासिल करने के लिए हांगकांग के करेंसी, इक्विटी और डेट बाजारों का इस्तेमाल करता है। दूसरी ओर अंतरराष्ट्र्रीय कंपनियां मेनलैंड चीन में अपना कारोबारी विस्तार करने के लिए हांगकांग को लांचपैड के तौर पर इस्तेमाल करती हैं। चीन ने कई साल में अपने बाजारों में कई सुधार लागू कर लिए हैं। इसके बावजूद मोर्गन स्टेनले के मुताबिक 2018 में चीन से दूसरे देशों में और दूसरे देशों से चीन में होने वाला 60 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) हांगकांग के जरिये हुआ।
चीन के आईपीओ में हांगकांग का करीब 50 फीसदी योगदान
पिछले साल चीन की कंपनियों ने प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के माध्यम से कुल 73.8 अरब डॉलर जुटाए। डीलॉजिक के आंकड़ों के मुताबिक इसमें से 35 अरब डॉलर का फंड हांगकांग में जुटाया गया।
चीन की डेट बाजार फंडिंग में हांगकांग का 25 फीसदी योगदान
रिफिनिटिव के आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल चीन की कंपनियों ने ऑफशोर डॉलर फंडिंग माध्यम से 131.88 अरब डॉलर जुटाए। इसका 25 फीसदी हिस्सा हांगकांग के डेट बाजार से जुटाया गया।
चीन जैसे-जैसे पूंजी प्रवाह को नियंत्रण मुक्त करता जाएगा, वैसे-वैसे हांगकांग का महत्व बढ़ता जाएगा
फिडेलिटी ने पिछले सप्ताह अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि हांगकांग, शंघाई और शेंझेन के शेयर बाजारों को जोड़ने की योजना से विदेशी निवेशकों को मेनलैंड चीन के शेयर खरीदने के लिए एक गेटवे मिला। चीन जैसे-जैसे अपनी पूंजी प्रवाह को नियंत्रण मुक्त करेगा, वैसे-वैसे इन चैनलों और आखिरकार हांगकांग का महत्व बढ़ता जाएगा।
हांगकांग में फाइनेंसिंग चैनल बिगड़ने से चीन की इकॉनोमी पर बढ़ेगा अस्थिरता का खतरा
नैटिक्सिस द्वारा एकत्र किए गए हांगकांग मॉनेटरी अथॉरिटी के आंकड़ों के मुताबिक हांगकांग में जितने भी कर्ज दिए गए हैं, उसमें ज्यादातर कर्ज चीन के बैंकों ने दिए हैं। अन्य देशों के बैंकों ने अपेक्षाकृत कम कर्ज जारी किए हैं। चीन के बैंकों ने हांगकांग में 1.1 लाख करोड़ डॉलर के कर्ज दिए हैं। यदि हांगकांग की स्वायत्तता घटेगी, तो वैश्विक पूंजी बड़े पैमाने पर हांगकांग से निकल जाएगी। हांगकांग की अर्थव्यवस्था में गिरावट आएगी। इसका सबसे बड़ा नुकसान चीन के बैंकों को होगा।
युआन को प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बनाने के लिए भी हांगकांग है महत्वपूर्ण
चीन अपनी मुद्रा को अत्यधिक उपयोग होने वाली अंतरराष्ट्र्रीय मुद्रा भी बनाना चाहता है। वह युआन को डॉलर की टक्कर में खड़ा करना चाहता है। इस योजना के लिए भी हांगकांग का काफी महत्व है। इसके अलावा चीन के आयात-निर्यात का कुछ हिस्सा अब भी हांगकांग के बंदरगाह के जरिये होता है, हालांकि पिछले कुछ दशकों में चीन के कुछ अन्य बड़े बंदरगाहों ने अपना योगदान काफी बढ़ा लिया है।
हांगकांग से निकलकर दूसरे देशों में जा सकती है पूंजी
कोरोनावायरस महामारी के कारण दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों ने बाजार में बड़े पैमाने पर नकदी बढ़ाई है। यदि हांगकांग की स्वायत्तता पर खतरा नहीं होता, तो यह नकदी सीधे हांगकांग के बाजार में पहुंचती। लेकिन हांगकांग में चीन का दखल और राजनीतिक अस्थिरता बढ़ने व विशेष दर्जा खत्म होने की आशंका के कारण वैश्विक बाजार में नकदी बढ़ने का फायदा अब सिंगापुर जैसे अन्य केंद्रों को मिलेगा। जो पूंजी पहले से हांगकांग में लगी हुई है, वह भी हांगकांग से निकलकर दूसरे देश का रुख कर सकती है। बैंकरों के मुताबिक हालांकि हांगकांग से अभी ज्यादा पूंजी बाहर नहीं निकली है।