नई दिल्ली। शेयर मार्केट में शुक्रवार का दिन शेयर मार्केट में किसी भूचाल से कम नहीं है। आपने आज गौर किया होगा कि चंद मिनटों में 3000 से ज्यादा अंक की गिरावट के बाद लोअर सर्किट लगा दिया गया। आपके मन में ये सवाल भी रहा होगा कि आखिर ये लोअर सर्किट होता क्या है? चलिए जानते हैं इस तकनीकी शब्द का मतलब...
बताते चलें कि आज विदेशी बाजारों से मिले निराशाजनक संकेतों से बढ़े बिकवाली के भारी दबाव में सेंसेक्स (Sensex) खुलते ही 3,000 अंक लुढ़ककर 29,687 पर पहुंच गया था। वहीं, निफ्टी (Nifty) 989 अंक टूटकर 9,059 पर खुला। बाजार में हालात को देखते हुए शेयर बाजार में लोअर सर्किट लगा दिया गया है। इसके एक घंटे बाद दोबारा बाजार खुला।
क्या होता है लोअर सर्किट:-
शेयर बाजार के एक सीमा से ज्यादा बढ़ने या गिरने पर सर्किट ब्रेकर (circuit breakers) लगाया जाता है। सबसे पहले इसकी शुरुआत भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने 2001 में की थी। सरल शब्दों में कहें तो इसका उद्देश्य शेयर बाजार में भारी उतार चढ़ाव को रोकना होता है। बताते चलें कि सर्किट ब्रेकर दो प्रकार का होता है। अपर सर्किट और लोअर सर्किट। शेयर बाजार में एक तय सीमा से ज्यादा बढ़त होने पर अपर सर्किट लगाया जाता है जबकि एक तय सीमा से ज्यादा गिरने पर लोअर सर्किट लगाया जाता है। सेबी ने इनके लिए 10 फीसदी, 15 फीसदी और 20 फीसदी की सीमा तय की है।
कब लगता है सर्किट ब्रेकर:-
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) की बेवसाइट के अनुसार अगर दोपहर 1 बजे के पहले शेयर बाजार 10 फीसदी बढ़े या गिरे तो सर्किट ब्रेकर के तहत अपर सर्किट या लोअर सर्किट लगाया जाता है। ऐसी स्थिति में ट्रेडिंग को 45 मिनट के लिए रोक दिया जाता है। लेकिन अगर 1 बजे के बाद 10 फीसदी उतार-चढ़ाव दर्ज किया जाता है तो कारोबार को केवल 15 मिनट के लिए ही रोका जाता है. इसी प्रकार 15 और 20 फीसदी के लिए भी नियम हैं।
गिरावट पर क्या कहते हैं अंतरराष्ट्रीय जानकार:-
अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना वायरस पर नियंत्रण को लेकर पूरी दुनिया में कोई ठोस पॉलिसी मौजूद नहीं है। साथ ही बीमारी के नियंत्रण में भी ज्यादा असर नजर नहीं आ रहा है। इसी वजह से अमेरिका, यूरोप और एशिया के बाजारों में अगले कुछ हफ्ते बड़े मुश्किल हो सकते हैं।