कहते हैं राजनीति में वो सब हो सकता है, जो कभी सोचा भी नहीं होगा। एक समय था, जब हिंदूवादी छवि के भाजपा नेता व पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया और ज्योतिरादित्य सिंधिया एक-दूसरे का चेहरा तक देखना पसंद नहीं करते थे। सिंधिया परिवार को महलों में रहने वाला कहकर चांदी की चम्मच से खाने वाला बताकर पवैया चुनाव मैदान में उतरे थे। काफी हद तक सिंधिया को हार के करीब भी ले आए थे, पर 23 साल की दुश्मनी के बाद अब दोस्ती की नई शुरुआत होती दिख रही है।
शुक्रवार शाम सिंधिया जयभान सिंह के घर पहुंचे। 25 मिनट यहां ठहरे, फिर बाहर निकलकर बोले- नया संबंध, नया रिश्ता कायम करने का प्रयास किया है, जबकि पवैया ने कहा है कि पिता के निधन पर शोक संवेदना व्यक्त करने आए थे। राजनीतिक मायके नहीं निकालें, एक कार्यकर्ता के दुख बांटने से ज्यादा कुछ नहीं है।
पहली बार घर आने पर सिंधिया को पवैया ने भेंट की भगवद् गीता। उन्होंने उसे माथे से लगाया।
25 मिनट तक दोनों ने की बात
जयभान सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की शुक्रवार शाम मुलाकात 25 मिनट की रही। इन 25 मिनटों में 23 साल पुरानी चुनावी रंजिश को दूर करने का प्रयास किया गया। सिंधिया ने जयभान सिंह के रूम में प्रवेश करने के साथ ही पूछा कैसे हो आप। पवैया ने भी जवाब में कहा- ठीक हूं, आप बताइए। इसके बाद, दोनों ने 25 मिनट तक चर्चा की। पता लगा है कि पहले 10 मिनट पूर्व मंत्री के पिता के निधन से संबंधित चर्चा होती रही, लेकिन उसके बाद वर्तमान में प्रदेश की राजनीति पर भी दोनों ने खुलकर बात की।
कट्टर सियासी विरोधी पवैया के घर पहुंचे सिंधिया
पवैया के पिता बलवंत सिंह पवैया का 20 अप्रैल को निधन हुआ था। इस क्षेत्र की राजनीति के नजरिए से यह मुलाकात अहम मानी जा रही है। इसको लेकर सिंधिया के कट्टर समर्थक ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का कहना है कि सिंधिया और पवैया के बीच राजनीतिक मत भिन्नता रही, लेकिन व्यक्तिगत मत भिन्नता नहीं थी। अब दोनों एक ही पार्टी में हैं। ऐसे में राजनीतिक मत भिन्नता भी खत्म हो गई है।
23 साल से चल रहा है टकराव
जयभान सिंह पवैया और सिंधिया परिवार के बीच सियासी टकराव पिछले 23 साल से चलता आ रहा है। वर्ष 1998 में जय भान सिंह पवैया ने कांग्रेस नेता स्व. माधवराव सिंधिया के खिलाफ ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था। उस चुनाव में सिंधिया और पवैया के बीच कड़ा मुकाबला हुआ। माधवराव सिंधिया 28 हजार वोट से चुनाव जीते थे। माधवराव सिंधिया ने इस बेहद मामूली जीत के बाद नाराज होकर आगे ग्वालियर से चुनाव नहीं लड़ा। उसके बाद माधवराव ने संसद में जाने के लिए गुना को चुना था। पवैया ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव में गुना लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ बीजेपी से चुनाव लड़ा था। यहां भी कांटे का मुकाबला हुआ। 4 लाख से जीतने वाले सिंधिया की जीत 1 लाख 20 हज़ार पर सिमट गई थी।
मुलाकात के बाद कौन क्या बोले
सिंधिया ने कहा-
अतीत, अतीत होता है। अब नया समय है, इसलिए नया रिश्ता, नया संबंध कायम करने का प्रयास किया है। एक नई शुरआत है। आगे हम दोनों मिलकर काम करेंगे ऐसी मैं आशा करता हूं।
पवैया ने कहा-
यह भारतीय परंपरा है। एक-दूसरे का दुख बांटने जाते हैं। मेरे पिता का निधन हुआ है। परिवार कोरोना संक्रमण की चपेट में है। ऐसे में सिंधिया का मेरे घर आना एक कार्यकर्ता का दूसरे कार्यकर्ता का दुख बांटने से ज्यादा कुछ नहीं है। इसके राजनीतिक मायके नहीं लगाना चाहिए।
दोनों की मुलाकात पर कांग्रेस ने कसा तंज