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शहर में दलबदल से गुस्सा था, गांवों में कोरोना के ‘दर्द’ को अनसुना कर देना BJP को ज्यादा भारी पड़ गया

Posted By: Himmat Jaithwar
5/3/2021

चुनाव लड़े और एक साल बाद पार्टी बदलकर फिर से कोई वोट मांगने खड़ा हो जाए… हैरानी होगी या नहीं? कोरोनाकाल में जब लोग बेड, इंजेक्शन और ऑक्सीजन मांग रहे हों और जवाबदेह वोट मांगने लगे.. दर्द होगा या नहीं? क्षेत्र के दिग्गज नेता का टिकट काटकर महज 798 वोटों से चुनाव जीते बाहरी प्रत्याशी को टिकट देंगे.. पार्टी के समर्थकों काे गुस्सा आएगा या नहीं?

दमोह में भाजपा के लिए "गुस्सा, दर्द और हैरानी" का यह मिक्स पैकेज कांग्रेस के प्रत्याशी अजय टंडन की जीत का कारण बन गया। वो भी ऐसा कि BJP कैंडिडेट राहुलसिंह अपने गांव में तो जयंत मलैया अपने बूथ पर हार गए। दलबदल, कोरोनाकाल का गुस्सा और जयंत मलैया समर्थकों की नाराजगी ने छह महीने में 28 में से 19 सीट जीतने वाली भाजपा का पार्टी का खेल बिगाड़ दिया। पूरी सरकार मिलकर भी यह इकलौती सीट नहीं जीत सकी।

राजस्थान तक प्रचार करने गए ज्योतिरादित्य सिंधिया तो मध्यप्रदेश की इस सीट पर सक्रिय ही नहीं हुए जो चर्चा का विषय है। इस सीट को जिताने के लिए वीडी शर्मा, प्रहलाद पटेल, उमा भारती सब जुटे थे ताे कांग्रेस से कमलनाथ ने कमान संभाली थी।

दमोह के विधानसभा उपचुनाव के नतीजे पर केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल ने सोशल मीडिया पर सवाल करते हुए लिखा भी है कि कि जीत की ओर अग्रसर कांग्रेस के उम्मीदवार अजय टंडन जी को शुभकामनाएं। हम जीते नहीं पर सीखे बहुत? जीते नहीं पर सीखे बहुत.. से उनका भी स्पष्ट इशारा है कि हार क्यों हुई। सिंधिया ने भी बधाई दे दी है।

सीट के बदले सीट तय हुआ था दमोह में
राहुलसिंह लोधी के लिए ‘सीट के बदले सीट’ के सौदे से BJP की साख को नुकसान हो सकता है। सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं होगा, लेकिन कोरोनाकाल में आलोचकों को मौका मिलेगा। तेवर सरकार के खिलाफ और तल्ख हो सकते हैं। इनमें भाजपा विधायक भी शामिल हैं।

संघ और पार्टी इंटेलिजेंस भी दंग हैं
BJP में हार से ज्यादा हैरत में गांवों का रूख नहीं भांप पाने से है। संघ से लेकर तमाम आनुषांगिक संगठन लगे हुए थे। कोरोना काे लेकर ‘दर्द’ गांव-गांव में है, इसे सभी अनसुना कर गए। पार्टी इंटेलिजेंस भी फेल हो गया। साफ था कि भाजपा प्रत्याशी राहुलसिंह से शहरी वोटर नाराज है पर गांव कब हाथ से फिसल गए, इससे सब चकित हैं।

शिवराज-संगठन की कोशिशें नतीजे भी नहीं बदली..
शिवराजसिंह चौहान के भाषण का अलग अंदाज है। वे यह कहकर कमजोर से कमजोर कैंडिटेट को जिता लाते रहे हैं कि आप तो मामा को देखिए.. यहां से एक नहीं दो विधायक रहेंगे। कोई कसर नहीं छोड़ूंगा। दूसरा, संगठन का मैनेजमेंट। जयंत मलैया स्तर के कई दिग्गजों के भितरघात और गुस्से को समय पर कंट्रोल करने में BJP को महारत है। दमोह में शिवराज और संगठन ने अपना-अपना यह काम बखूबी किया, लेकिन तीसरा फैक्टर भारी पड़ा। वह था कोरोनाकाल में इलाज के लिए भटकते लोग। मुक्तिधाम में जलती चिताएं। घर-अस्पतालों से निकल रहीं चीत्कारों की आग पर चुनावी जुमलों ने जैसे घी ही डाल दिया।

मुख्यमंत्री समेत भाजपा नेताओं के काफिले के सामने ही कोरोना में रैली-सभाओं को छूट दिए जाने पर पोस्टर दिखा दिए गए। बहन की मौत से दु:खी एक भाई द्वारा प्रदेश के सरकार के खिलाफ श्मशान से वीडियो बनाकर वायरल कर दिया गया। बावजूद पार्टी इससे निश्चिंत बनी रहीं।

छोटे पैमाने के उपचुनाव में भाजपा हारती आ रही
पिछले 5 सालों में BJP का एक-दो सीटों वाले उपचुनाव में परफार्मेंस अमूमन खराब ही रहा है। नवंबर 2020 के 28 सीटों की सरकार बनाने-बिगाड़ने वाले उपचुनाव को छोड़ दें तो वह पिछले 6 में से 5 सीटों पर उपचुनाव हारी थी।
अप्रैल 2017 में आखिरी बार बांधवगढ़ सीट पर शिवनारायणसिंह BJP के टिकट पर उपचुनाव जीते जबकि भिंड की अटेर सीट से कांग्रेस के हेमंत कटारे ने जीत दर्ज की थी।

इसके बाद से नवंबर 2017 में चित्रकूट, फरवरी 2018 में से मुंगावली और कैलारस, अक्टूबर 2019 में झाबुआ उपचुनाव कांग्रेस ही खाते में गए थे।



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