इंजीनियरिंग और MBA की पढ़ाई कर चुके स्वरूप नंदा ने 2010 में बिजनेस की शुरुआत की। उनकी पब्लिशिंग कंपनी लीड स्टार्ट को दो साल में ही सफलता का स्वाद लग गया। उत्साह में आकर स्वरूप ने 2013 में एक प्रोजेक्ट पर एकमुश्त 1.7 करोड़ रुपए लगा दिए। प्रोजेक्ट फेल हो गया और उनका घर तक बैंक ने अपने कब्जे में ले लिया। अगले तीन साल वो हर रात इसी सवाल के साथ सोए कि आखिर मुझसे क्या गलती हुई? उनकी विफलता ने आखिरकार रास्ता दिखाया और 2016 में 'पेंसिंल' का आइडिया उनके दिमाग में आया।
आइडियाः मुफ्त में पब्लिश करवा सकते हैं अपनी किताब
ये एक वेबसाइट है जहां पर लोग अपनी किताबें मुफ्त में पब्लिश कर सकते हैं। इस प्लेटफॉर्म पर पब्लिश होते ही किताब ई-बुक और पेपरबैक फार्मेट में किंडल, अमेजन, फ्लिपकार्ट और गूगल प्ले जैसे दुनिया भर के सैकड़ों प्लेटफॉर्म तक पहुंच जाती है। जहां से इसे खरीदा जा सकता है।
पेंसिल के फाउंडर स्वरूप नंदा बताते हैं, 'हमारे प्लेटफॉर्म पर आपको किताब की पूरी इनसाइट मिलती है। मसलन कितने लोगों ने किताब पढ़ी, किस चैप्टर से छोड़कर चले गए, कहां पाठकों ने डिक्शनरी का इस्तेमाल किया। इन इनसाइट्स का इस्तेमाल करके लेखक अपनी किताब को ज्यादा रोचक बना सकता है।
स्टार्टः संदीपन का मिला साथ, गाड़ी चल पड़ी
स्वरूप के पास आइडिया तो दमदार था, लेकिन कोई तकनीकी जानकारी नहीं थी। उन्होंने स्टार्टअप कॉन्फ्रेंस में जाना शुरू किया। वहां वो लोगों से अपना आइडिया शेयर करते थे। ऐसी ही एक कॉन्फ्रेंस में उनकी मुलाकात संदीपन चटोपाध्याय से हुई। वो Xelpmoc डिजाइन एंड टेक कंपनी चलाते हैं। उन्हें पेंसिल का आइडिया पसंद आया।
स्वरूप बताते हैं, 'संदीपन मुंबई के किसी फाइव स्टार होटल में ठहरे हुए थे। उस दिन अपना लैपटॉप मैं घर पर ही भूल गया था। एक पेपर में मैंने उन्हें अपना पूरा आइडिया शेयर किया। उन्होंने उसी वक्त कह दिया कि हम इसे करेंगे। इसके बाद उन्होंने हमारी कंपनी में कुछ हिस्सेदारी लेकर टेक्नोलॉजी डेवलप करना शुरू कर दिया।’
फंडिंग: अब तक 14 करोड़ रुपए जुटाए
2018 में आइडिया पर काम शुरू हो गया था, लेकिन अगली बड़ी चुनौती थी कि बाकी पैसे कहां से आएंगे। स्वरूप बताते हैं, ‘हमने एंजेल नेटवर्क से फंड रेज करना शुरू किया। पहले राउंड की फंडिंग अप्रैल 2019 में आई। इसके बाद कई अन्य इंटरनेशनल इंवेस्टर भी जुड़ गए। अब तक पेंसिल ने करीब 14 करोड़ रुपए की फंडिंग जुटाई है। इसमें SucSEED, SOSV, Inflection Point इनवेस्टर शामिल हैं।’
बिजनेस मॉडलः किताब चल गई तो 50-50 हिस्सेदारी
पेंसिल पर किताब पब्लिश करने के लिए लेखक को कोई पैसे नहीं खर्च करना है। स्वरूप बताते हैं, ‘लेखक के साथ हमारा एक करार होता है। जब किताब से कमाई होगी तो उसमें 50-50 की हिस्सेदारी रहेगी।’ इसके अलावा प्लेटफॉर्म पर किताब का कवर डिजाइन और एडिटिंग के लिए भी प्रोफेशनल सर्विस दी जाती है। इसके लिए पैसे चार्ज किए जाते हैं।
किताब पब्लिश करवाने के पूरे प्रॉसेस के बारे में पेंसिल की को-फाउंडर प्रीति चिब बताती हैं, ‘किसी भी कंप्यूटर या लैपटॉप के वेब ब्राउजर पर जाना है। वहां thepencilapp.com वेबसाइट लॉग इन करना है। यहां आपको किताब का टाइटल, कवर डिजाइन और टेक्स्ट भरना है। प्लेटफार्म आपकी किताब की कीमत बता देगा। इसके बाद आपको एक कॉन्ट्रैक्ट साइन करना है। ये प्रॉसेस पूरा होते ही आपकी किताब छपने के लिए तैयार है।’
टारगेटः पेंसिल को लोगों की क्रिएटिव आईडी बनाना है
स्वरूप बताते हैं, 'पेंसिल की पब्लिक लॉन्चिंग सितंबर 2020 में हुई थी। 19 हफ्तों में ही हमारे प्लेटफॉर्म पर लगभग 10 हजार लेखक रजिस्टर हुए हैं। 400 किताबें पब्लिश हो चुकी हैं। और लगभग साढ़े 6 हजार किताबें ड्राफ्ट में हैं। अभी हमारी टीम में 39 लोग काम कर रहे हैं।'
स्वरूप और प्रीति इस साल अपने रीडर ऐप पर 1 मिलियन डाउनलोड करना चाहते हैं। इसके अलावा वो 1 लाख लेखकों को पेंसिल प्लेटफॉर्म पर लाना चाहते हैं। उनका कहना है कि 2-3 साल के बाद पेंसिल आपकी क्रिएटिव सोशल आईडी बन जाएगी। जैसे आप प्रोफेशनल काम के लिए लिंक्डइन और सोशल के लिए फेसबुक रखते हैं।
स्वरूप कहते हैं, ‘लिखना एक मेडिटेशन की तरह है। लिखते हुए आप कोई और काम नहीं कर सकते। इसलिए हर इंसान को एक घंटा कुछ लिखने के लिए देना चाहिए। हर शख्स के पास बताने के लिए सैकड़ों कहानियां हैं।’