रायपुर। बीजापुर में 3 अप्रैल को CRPF और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ में 22 जवान शहीद हुए थे और कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह को नक्सलियों ने अगवा कर लिया था। 5 दिन बाद कमांडो की रिहाई हुई तो उनके साथ मुस्कुराते हुए एक बुजुर्ग की फोटो सामने आई। ये धरमपाल सैनी हैं। 92 साल के सैनी बस्तर में ताऊजी नाम से मशहूर हैं। कमांडो की रिहाई के लिए उन्होंने सरकार और नक्सलियों के बीच मध्यस्थता की। धरमपाल सैनी के बस्तर आने और फिर यहीं के होकर रह जाने की कहानी बेहद दिलचस्प है। जानिए आखिर कौन हैं कमांडो की रिहाई करवाने वाले बस्तर के ये ताऊजी।
मूल रूप से मध्यप्रदेश के धार जिले के रहने वाले धरमपाल सैनी विनोबा भावे के शिष्य रहे हैं। 60 के दशक में सैनी ने अखबार में बस्तर की लड़कियों से जुड़ी एक खबर पढ़ी थी। उस खबर में लिखा था कि दशहरे के मेले से लौटते वक्त कुछ लड़कियों के साथ कुछ लड़कों ने छेड़छाड़ की। लड़कियों ने उन लड़कों के हाथ-पैर काटकर उनकी हत्या कर दी थी। सैनी ये खबर देखकर सोच में पड़ गए। उन्होंने सोचा बस्तर जाकर यहां की बेटियों को सही दिशा देनी होगी। कुछ सालों बाद उन्होंने अपने गुरु विनोबा भावे से बस्तर आने की इजाजत मांगी। भावे ने उन्हें 5 रुपए का नोट थमाया और इस शर्त के साथ अनुमति दी कि वे कम से कम दस साल बस्तर में ही रहेंगे।
कमांडो राकेश्वर के साथ धरमपाल सैनी। तस्वीर बीजापुर के उस गांव की है जहां नक्सलियों ने कमांडो को रिहा किया था।
1976 में सैनी बस्तर आए और फिर यहीं के होकर रह गए। आगरा यूनिवर्सिटी से कॉमर्स ग्रेजुएट सैनी एथलीट रहे हैं। जब वे बस्तर आए तो देखा कि छोटे-छोटे बच्चे भी 15 से 20 किलोमीटर आसानी से पैदल चल लेते हैं। बच्चों की इस स्टेमिना को स्पोर्ट्स और एजुकेशन में यूज करने का प्लान उन्होंने तैयार किया। 1985 में पहली बार उनके आश्रम की छात्राओं को स्पोर्ट्स कॉम्पिटिशन में उतारा। इसके बाद हजारों बच्चियों को उन्होंने खेल से जोड़ दिया। गर्ल्स एजुकेशन में बेहतर योगदान के लिए 1992 में सैनी को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। 2012 में द वीक मैगजीन ने सैनी को मैन ऑफ द ईयर चुना था।
सैनी अपने आश्रमों में बच्चियों को सकारात्मक तरीके से हर वो चीज सिखाने की कोशिश करते हैं जो उनकी जिंदगी में काम आए।
सैनी के आश्रम में पढ़ने वाली बच्चियां हर साल खेल और दूसरी एक्टिविटी में अवॉर्ड जीतती हैं।
गांधीवादी विचारों और आदर्शों को मानने वाले सैनी बस्तर संभाग में 37 आश्रम चलाते हैं। ये एक तरह के हॉस्टल होते हैं, यहां रहकर आदिवासी बच्चियां पढ़ाई करती हैं। सैनी के आने से पहले तक बस्तर में साक्षरता का ग्राफ 10% भी नहीं था। आज यह बढ़कर 50% के करीब पहुंच चुका है। सैनी के बस्तर आने से पहले तक आदिवासी लड़कियां स्कूल नहीं जाती थीं। आज सैनी की स्टूडेंट्स बस्तर में कई अहम पदों पर काम कर रही हैं।
बच्चियों को फिजिकल ट्रेनिंग भी ताऊ जी खुद ही देते हैं।
सैनी के आश्रम में रह रहीं बच्चियों को अलग-अलग खेल प्रतियोगिताओं में दर्जनों अवॉर्ड मिल चुके हैं। अब सालाना 100 स्टूडेंट्स अलग-अलग इवेंट में अपना परचम लहराती हैं। अब तक आश्रम की 2,300 स्टूडेंट्स अलग-अलग स्पोर्ट्स इवेंट में हिस्सा ले चुकी हैं। डिमरापाल स्थित आश्रम में हजारों की संख्या में मेडल्स और ट्रॉफियां रखी हुई हैं। आश्रम की छात्राएं अब तक स्पोर्ट्स में इनाम के रूप में 30 लाख से ज्यादा की राशि जीत चुकी हैं।
सैनी अपने आश्रम की बच्चियों की ट्रेनिं, डाइट और दूसरी जरूरतों का ख्याल खुद ही रखते हैं।बस्तर के आदिवासी परिवार सैनी का आदर करते हैं।
बातचीत के लिए इस वजह से चुना गया ताऊजी को
पुलिस अपने इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट से कमांडो राकेश्वर को रिहा करवाने को लेकर हर तरह की कोशिश कर रही थी। अफसरों को इनपुट मिला कि नक्सली किसी निष्पक्ष आदमी से बातचीत के बाद कमांडो को रिहा कर सकते हैं। सैनी 1976 से बस्तर को देख रहे हैं। यहां के नक्सल प्रभावित गांवों में वो शिक्षा को लेकर काम कर रहे हैं। ऐसे में वो एक अहम व्यक्ति थे। पुलिस ने धरमपाल सैनी से बात की। सैनी खुद भी कई मौकों पर नक्सलियों से बातचीत कर बस्तर में शांति कायम करने की इच्छा जाहिर कर चुके थे। इसलिए उनके साथी जय रुद्र करे, आदिवासी समाज के बौरैय तेलम, सुकमती हक्का और 7 पत्रकारों की टीम नक्सलियों से बातचीत के लिए भेजी गई थी।