यहां की 9 सीटों पर राजवंशी समुदाय का दबदबा है, पिछले विधानसभा चुनाव में ये TMC के वोटर्स थे, पर लोकसभा चुनाव में BJP के पाले में शिफ्ट हो गए

Posted By: Himmat Jaithwar
4/5/2021

कूचबिहार। कूचबिहार में जीत-हार तय करने के खास किरदार राजवंशी समुदाय को साधने में BJP, TMC से ज्यादा कामयाब लगती है। पिछले लोकसभा चुनाव में ऐसा ही था। BJP यह सीट जीत गई, उसकी यहां की 9 विधानसभा सीटों में से 7 सीटों पर बढ़त रही। राजवंशी, पिछले यानी 2016 में हुए विधानसभा चुनाव तक TMC के साथ थे। इसलिए BJP का खाता भी नहीं खुल सका। तब TMC ने 8 सीटें जीती। एक सीट फारवर्ड ब्लाक को मिली। इस नतीजे को बड़ी नसीहत मानते हुए BJP ने राजवंशी समुदाय को अपना बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बेशक, इनमें ज्यादातर भावनात्मक मसले ही रहे।

खैर, इसका सार्थक नतीजा लोकसभा चुनाव के रिजल्ट के रूप में सामने आया। दरअसल, राजवंशी समुदाय, यहां रह रहे घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिए NRC चाहता है। और BJP, जाहिर तौर पर इसकी सूत्रधार या इकलौती पैरोकार है। इस बार के चुनाव में खासकर इस इलाके में NRC का मुद्दा बहुत नियोजित और असरदार तरीके से प्रचारित है। ममता बनर्जी और उनके दूसरे नेता असदुद्दीन ओवैसी को अब सीधे BJP का एजेंट बताकर लोगों को उनसे सावधान कर रहे हैं।

TMC ने राजवंशी समुदाय को अपने पाले में करने और अपने वोटों की क्षति को बैलेंस करने के लिए यह लाइन पकड़ी है। हालांकि इसकी प्रतिक्रिया में हो रही गोलबंदी BJP के लिए फायदेमंद है।

हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह ने कूचबिहार में रैली की थी, जहां उन्होंने राजवंशी समुदाय के लिए कई वादे किए।
हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह ने कूचबिहार में रैली की थी, जहां उन्होंने राजवंशी समुदाय के लिए कई वादे किए।

राजवंशी समुदाय को साधने में कोई पीछे नहीं

ऐसी बात नहीं कि TMC, राजवंशी समुदाय की तरफ से बिल्कुल निराश है। इनको, जाति-संस्कृति-भाषा की प्राइड व ऐतिहासिक गरिमा के हवाले तुष्ट करने की कवायद में TMC, BJP से बिल्कुल पीछे नहीं है। इलाके में 'ग्रेटर कूचबिहार स्टेट' से सहानुभूति/सरोकार रखते हुए, वादा/आश्वासन/भरोसे की भरमार है। तर्ज, 'जो मांगोगे, वही मिलेगा', वाला। दोनों के बीच दोनों हाथों से देने की होड़ है। ममता बनर्जी ने 'नारायणी सेना' के गठन की बात कही, तो अमित शाह ने अर्द्धसैनिक बल में नारायणी सेना बटालियन का ऐलान किया। इसके ट्रेनिंग सेंटर का नाम वीर चीला रॉय के नाम पर होगा, जो राजवंशी समुदाय के इतिहास की बड़ी हैसियत हैं। ममता सरकार ने इस समुदाय की बड़ी शख्सियत ठाकुर पंचानन बर्मा के नाम से विश्वविद्यालय बनाया।

ग्रेटर कूचबिहार पीपुल्स एसोसिएशन के एक गुट के मुखिया बंशी बदन वर्मन ममता सरकार के ऐसे कई और काम गिनाते हैं- 'राजवंशी भाषा को उत्तर बंगाल के स्कूलों में पढ़ाने की तैयारी है। कामतापुरी को भी यही हैसियत मिलनी है। इस समुदाय के कई शख्सियतों के जन्मदिन पर राजकीय अवकाश घोषित हुए। उनको याद करने को राजकीय समारोह होते हैं।'

ममता बनर्जी भी कूचबिहार में रैली कर चुकी हैं। वहां उन्होंने कहा था कि असदुद्दीन ओवैसी के झांसे में वोटर्स को नहीं आना चाहिए।
ममता बनर्जी भी कूचबिहार में रैली कर चुकी हैं। वहां उन्होंने कहा था कि असदुद्दीन ओवैसी के झांसे में वोटर्स को नहीं आना चाहिए।

ग्रेटर कूचबिहार पीपुल्स एसोसिएशन के एक गुट के मुखिया अनन्त रॉय से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मिल चुके हैं। अमित शाह की कई घोषणाएं राजवंशियों के कानों में लगातार गूंज रही हैं। इनमें कुछ खास हैं- 500 करोड़ रुपए का राजवंशी सांस्कृतिक केंद्र, टूरिस्ट सर्किट, 250 करोड़ का ठाकुर पंचानन बर्मा स्मारक केंद्र और उनकी प्रतिमा की स्थापना। अनन्त रॉय गुट के शुभेंदु बर्मन कहते हैं- 'हमारे लिए देश की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण है, सबके बड़ा खतरा यहां घुसपैठ है। दीदी तो इसे बढ़ाते ही जाएंगी। यह हमारे हर तरह के अधिकार को भी खा जा रहा है। लोकल मुद्दे, चाहे एयरपोर्ट के शुरू न होने का मसला हो या उद्योग-रोजगार की दरकार, बहुत लंबी दास्तान है।'

लेफ्ट से TMC और फिर BJP के पाले में आ गए राजवंशी

लेकिन, चुनाव या इसके परिणाम का आधार NRC जैसा राष्ट्रीय और भावनाओं को सीधे छूने वाला जाति-भाषा का मुद्दा ही होगा। ऐसा ही एक मसला अलग 'ग्रेटर कूच बिहार स्टेट' है। इसकी बेसिक को जिंदा रखते हुए इसी से जुड़ी दूसरी बातें की जा रही हैं। 28 अगस्त 1949 को स्वतंत्र कूचबिहार रजवाड़े को भारत में शामिल करने का समझौता हुआ था। ग्रेटर कूच बिहार पीपुल्स एसोसिएशन कहता है- 'गलत तरीके से कूचबिहार राज्य को पश्चिम बंगाल में जिले के तौर पर शामिल कर लिया गया।'

'ग्रेटर कूचबिहार स्टेट' की मांग का यही खास आधार है। इसको लेकर बहुत पहले से आंदोलन होता रहा है। सितंबर 2005 में आंदोलन के दौरान हिंसा हुई। कॉमरेडों की सरकार ने इसे सख्ती से कुचला। उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। उनसे अलग होकर राजवंशी TMC के साथ आए। फिर BJP के साथ। अब ...? देखने वाली बात होगी कि राजवंशियों ने किसके वादों पर कितना ज्यादा भरोसा किया?



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