गुजरात के मैकेनिकल इंजीनियर ने 4 गायों से पशुपालन शुरू किया, अब हर साल 8 लाख का मुनाफा

Posted By: Himmat Jaithwar
10/24/2020

पाटण। गुजरात की पाटण तहसील के बोतरवाडा गांव में रहने वाले हरेश पटेल मैकेनिकल इंजीनियर हैं। वे फेब्रिकेशन का काम करते थे। डेढ़ साल पहले उन्होंने पशुपालन का काम शुरू किया। इससे वे हर साल 8 लाख रुपए की कमाई कर रहे हैं। वे अपने खेतों में गोबर और गोमूत्र का उपयोग कर केमिकल खाद का खर्च भी बचाते हैं। इसके साथ ही वे अब गोबर से धूपबत्ती भी बना रहे हैं।

35 साल के हरेश ने पिता और बड़े भाई की सलाह पर 4 गायों से शुरुआत की। धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ाते गए और आज उनके पास 44 गायें हैं। अब उनका टारगेट 100 गायों का है। हरेश पटेल की गोशाला माधव गोशाला के नाम से पहचानी जाती है, जिसमें गिर नस्ल की ही देसी गाएं हैं। गायों के दूध से घी बनाते हैं, जिसकी मार्केट में कीमत 1700 रुपए किलो है। इसके अलावा गायों के मूत्र से अर्क और गोबर से इकोफ्रेंडली धूपबत्ती (कई फ्लेवर में, गूगल, लोबान आदि) बनाकर बेचते हैं।

हरेश ने 4 गायों से गोशाला की शुरुआत की। धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ाते गए और आज उनके पास 44 गायें हैं।
हरेश ने 4 गायों से गोशाला की शुरुआत की। धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ाते गए और आज उनके पास 44 गायें हैं।

पशुपालन के साथ खेती भी

हरेश पटेल के पास 30 बीघा जमीन है, जिसमें वे ऑर्गेनिक खेती करते हैं। खेती में गो-मूत्र और गोबर का उपयोग करते हैं। इससे न सिर्फ केमिकल खाद खरीदने का खर्च बचता है, बल्कि इससे जमीन भी उर्वरा रहती है। खेतों में गोबर और गोमूत्र के अलावा कीटनाशक के रूप में छाछ का छिड़काव करते हैं। इतना ही नहीं, गायों के लिए घास-चारा भी खेतों में ही उगाते हैं। गिर जंगल की गायों के शुद्ध घी की गुजरात में काफी डिमांड है। पिछले साल उन्होंने 400 किलो घी तैयार कर बेचा, जिससे उन्हें करीब 8 लाख रुपए की कमाई हुई।

बड़े शहरों में घी पहुंचाते हैं

हरेश पटेल ऑर्गेनिक खेती भी करते हैं। खेती में गो-मूत्र और गोबर का उपयोग करते हैं। इससे न सिर्फ केमिकल खाद खरीदने का खर्च ही बचता है, बल्कि इससे जमीन भी उर्वरा रहती है।
हरेश पटेल ऑर्गेनिक खेती भी करते हैं। खेती में गो-मूत्र और गोबर का उपयोग करते हैं। इससे न सिर्फ केमिकल खाद खरीदने का खर्च ही बचता है, बल्कि इससे जमीन भी उर्वरा रहती है।

पशुपालन की शुरुआत के समय हरेश पटेल सालाना 12 हजार लीटर का उत्पादन करते थे। प्रति लीटर दूध की 70 रुपए कीमत मिलती थी। इसके बाद बचे दूध का घी बनाकर बेचते थे। जब वडोदरा-सूरत और मुंबई जैसे शहरों में घी की डिमांड बढ़ने लगी तो उन्होंने दूध बेचना छोड़कर उसका घी तैयार करना शुरू कर दिया। हरेश बताते हैं कि घी की मांग अब भी बढ़ती जा रही है और इसके चलते वे गिर नस्ल की गायों की संख्या बढ़ाने कोशिशों में लगे हुए हैं।

100 गायों के पालन का लक्ष्य
हरेश गिर की कई नस्लों की गायों के बचाने की कोशिश कर रहे हैं। राज्य सरकार से मिलने वाली सहायता राशि से गायों की खरीदी करते हैं। हरेश को इसी साल गुजरात सरकार द्वारा श्रेष्ठ पशुपालक के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। दाहोद में आयोजित पुरस्कार वितरण समारोह में कैबिनेट मंत्री कुंवरजी बावलिया ने उन्हें अवॉर्ड के साथ 15000 रुपए भी दिए।



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