कंपनियां कर्मियों के हाथ में चिप लगवा रही थीं ताकि बिना छुए गेट और कम्प्यूटर खुल सकें, अमेरिका के 11 राज्यों ने गैर-कानूनी कहा

Posted By: Himmat Jaithwar
7/3/2020

कैलिफोर्निया. अमेरिका के मिशिगन राज्य की संसद में एक विधेयक पारित किया गया है। इसके तहत कंपनियां अपने कर्मचारियों को शरीर में माइक्रोचिप लगाने के लिए बाध्य नहीं कर सकतीं। 2017 में कंपनियों ने एक पॉलिसी लागू की थी, जिसके तहत कर्मचारियों के शरीर में आरएफआईडी माइक्रोचिप लगनी थी, ताकि दफ्तर में उनके प्रवेश करते ही दरवाजे खुल जाते, कम्प्यूटर खुल जाते और यहां तक कि कैंटीन से नाश्ता लेने पर भुगतान भी अपने आप हो जाता। खासतौर पर इस चिप के जरिए कंपनियां कर्मचारियों की गतिविधियों पर नजर रख सकती थीं।

हालांकि, कंपनियों की यह नीति स्वेच्छा आधारित थी। लेकिन, भय था कि कंपनियां कर्मचारियों को यह चिप लगवाने के लिए बाध्य कर सकती हैं। यह विधेयक पारित होने के बाद कर्मचारियों को बाध्य करना कंपनियों के लिए गैर-काूननी होगा। माइक्रोचिप प्रोटेक्शन नामक इस विधेयक के तहत कर्मचारी खुद चाहे तो चिप अपने शरीर में इम्प्लांट करवा सकता है। हालांकि, विधेयक पास होने के बाद कानून बनने के लिए जरूरी है कि यह अमेरिका के सीनेट में भी पारित किया जाए। इसकी तैयारी शुरू हो चुकी है। कैलिफोर्निया, अरकंसास, मिसौरी समेत 10 राज्यों में यह विधेयक पहले ही पारित हो चुका है।

निजता के उल्लंघन की संभावना

इस विधेयक को प्रस्तावित करने वाले मिशिगन संसद के प्रतिनिधि ब्रोना काॅल को यह डर है कि अगर इस नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया तो कर्मचारियों की निजता के उल्लंघन की संभावना बढ़ जाएगी। इधर, इस इस नई तकनीक का इस्तेमाल करने वाली कंपनी एम 32 के सीईओ टॉड वेस्टबी का कहना है कि आने वाले समय में इस चिप में कर्मचारियों के बिजनेस कार्ड, मेडिकल इन्फॉर्मेशन और बैंकों की जानकारी भी सेव की जा सकती है। यहां तक कि लोग इसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट के पास, एटीएम कार्ड और पासपोर्ट की तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे आपके कार्ड, पासपोर्ट आदि के खोने की संभावना भी नहीं रह जाएगी।

चावल के दाने जितनी बड़ी माइक्रोचिप की कीमत 23 हजार रुपए

चावल के दाने जितनी बड़ी चिप की कीमत करीब 23 हजार रुपए है। इसे हाथ में कहीं भी सर्जरी करके लगाया जा सकता है। इसे लगाने के बाद आपके हाथ के इशारे से दरवाजे, वेंडिंग मशीन, कम्प्यूटर इत्यादि मशीनें काम करने लगती हैं। इसके उपयोग से कंपनियों को पता चल जाता है कि कर्मचारियों का कंपनी में किन-किन जगहों पर आना-जाना हुआ था। 



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