राजस्थान में 2 आईआईटीयन बिना जमीन के उगा रहे हर रोज 5 क्विंटल सब्जियां, हर महीने 7 लाख का बिजनेस, 40 लोगों को नौकरी भी दी

Posted By: Himmat Jaithwar
6/5/2021

नई दिल्ली। बिना जमीन के फल और सब्जियों की खेती, आपको यह जानकर थोड़ी हैरानी हो सकती है, लेकिन यह सच है। देश के कुछ हिस्सों में इस तरह की खेती की जा रही है। इस तकनीक को हाइड्रोपोनिक सिस्टम कहा जाता है। इस तरह की खेती के लिए जमीन की जगह न्यूट्रिशनल वॉटर की जरूरत होती है। राजस्थान के रहने वाले अभय सिंह और अमित कुमार IIT बॉम्बे से पास आउट हैं। दोनों मिलकर पिछले तीन साल से इस नई तकनीक से खेती कर रहे हैं। अभी हर दिन वे 500 किलो (5 क्विंटल) सब्जियों का प्रोडक्शन कर रहे हैं। और हर महीने एक फार्म से 3.5 लाख की मार्केटिंग वे कर रहे हैं। उन्होंने राजस्थान के कोटा और भीलवाड़ा में अपने फार्म लगाए हैं।

तीन साल तक नौकरी की, लेकिन मन नहीं लगा

अभय सिंह मूल रूप से उत्तरप्रदेश के रहने वाले हैं। हालांकि उनकी पढ़ाई-लिखाई राजस्थान में हुई है। इसके बाद वे 2010 में IIT बॉम्बे चले गए। जबकि अमित श्रीगंगानगर के रहने वाले हैं। दोनों की दोस्ती IIT बॉम्बे में हुई। पढ़ाई के दौरान अभय और अमित ने रोबोटिक सिस्टम पर काम किए। दोनों ने अवॉर्ड भी जीते। इसके बाद 2014 में दोनों की एक कंपनी में जॉब लग गई।

अभय के साथ उनके टीम के सदस्य और इन्वेस्टर्स। अभय की टीम में अभी 40 लोग काम करते हैं।
अभय के साथ उनके टीम के सदस्य और इन्वेस्टर्स। अभय की टीम में अभी 40 लोग काम करते हैं।

करीब 3 साल तक जॉब करने के बाद दोनों को लगा कि अब खुद का कुछ करना चाहिए। कुछ ऐसा काम जिसमें अर्निंग के साथ-साथ सोशल चेंज भी हो और लोगों को लॉन्ग टर्म फायदा भी मिले। चूंकि अभय और अमित दोनों ही फार्मर फैमिली से ताल्लुक रखते थे। इसलिए तय किया कि इसी सेक्टर में कुछ किया जाए ताकि किसानों को भी फायदा हो और लोगों को बेहतर फूड भी खाने को मिले।

अक्टूबर 2017 में अभय और अमित ने नौकरी छोड़ दी। इसके बाद करीब 6 महीने तक उन्होंने राजस्थान के कुछ गांवों का दौरा किया। वहां के किसानों से मिले। खास करके जो किसान ऑर्गेनिक फार्मिंग करते थे। उनसे तौर तरीके और उनके बिजनेस को समझने की कोशिश की।

28 साल के अभय कहते हैं कि तब हमने रियलाइज किया कि ऑर्गेनिक फार्मिंग करने वाले किसान या तो ज्यादा प्रोडक्शन नहीं कर पा रहे हैं या फिर उन्हें सही कीमत नहीं मिल रही। उनके लिए खेती खर्चीली साबित हो रही है और लोग महंगी सब्जियां खरीदना नहीं चाहते। जिससे उन्हें बेहतर मार्केट नहीं मिल पा रहा है। वहीं जो लोग हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती कर रहे हैं, वे भी महंगी और विदेशी सब्जियां ज्यादा उगा रहे हैं। इससे सब्जी की कीमत भी बढ़ जाती है और सेहत के लिए ऐसे सब्जियां ठीक नहीं होती।

घर के छत से की फार्मिंग की शुरुआत

अभय और उनकी टीम सीजन के हिसाब से डेली यूज की हर सब्जियां उगाती हैं और फिर मार्केट में सप्लाई करती हैं।
अभय और उनकी टीम सीजन के हिसाब से डेली यूज की हर सब्जियां उगाती हैं और फिर मार्केट में सप्लाई करती हैं।

साल 2018 में अभय और अमित ने मिलकर घर की छत से हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती की शुरुआत की। उन्होंने अपने छत पर ही पालक, भिंडी, टमाटर, लौकी जैसी सब्जियां उगाईं। इसके बाद कोटा के लोकल मार्केट में सेल किया। हालांकि शुरुआत में उन्हें कुछ खास मुनाफा नहीं हुआ। उनके लिए भी यह तकनीक महंगी पड़ रही थी।

अभय बताते हैं कि इस तकनीक में आमतौर पर कोकोपीट का उपयोग मिट्टी की जगह होता है। जिसे 6 महीने या सालभर के भीतर बदलना पड़ता है। ताकि हम जिस मीडियम में प्लांट उगाते हैं, उसका PH लेवल मेंटेन रहे। ऐसे में प्रोडक्शन की कॉस्ट बढ़ जाती है।

इस समस्या का हल ढूंढने के लिए अभय और उनकी टीम ने काफी रिसर्च किया। कई तरह के एक्सपेरिमेंट किए। इसके बाद उन्होंने एक ग्रोइंग चैंबर तैयार किया। इसमें कोकोपीट की जरूरत नहीं थी और न ही 6 महीने, सालभर पर मीडियम बदलने की।

साल भर रिसर्च किया, ताकि लागत का खर्च कम हो सके

अभय और अमित ने अभी राजस्थान में कोटा और भीलवाड़ा में अपने फार्म लगाए हैं। जहां वे हाइड्रोपोनिक सिस्टम के जरिए खेती कर रहे हैं।
अभय और अमित ने अभी राजस्थान में कोटा और भीलवाड़ा में अपने फार्म लगाए हैं। जहां वे हाइड्रोपोनिक सिस्टम के जरिए खेती कर रहे हैं।

अगले साल अभय ने Eeki foods नाम से अपनी कम्पनी बनाई। फिर कोटा में एक चौथाई एकड़ जमीन ली। यहां उन्होंने करीब 25 लाख रुपए की लागत से एक पॉलीहाउस तैयार किया। इसके बाद उसमें हाइड्रोपोनिक सिस्टम डेवलप किया और ग्रोइंग चैम्बर्स लगा दिए। इस नई तकनीक से खेती का उन्हें फायदा भी हुआ। अभय कहते हैं कि अगले साल से हमारी खेती की लागत भी कम हो गई और प्रोडक्शन भी काफी ज्यादा बढ़ गया। इसका असर ये हुआ कि हम लोगों को मार्केट रेट पर ही प्योर और ऑर्गेनिक फूड प्रोवाइड कराने लगे।

अभी अभय करीब 400 घरों में अपने प्रोडक्ट पहुंचा रहे हैं। साथ ही कई दुकानदार और रिटेलर्स भी उनके कस्टमर्स हैं। राजस्थान में कोटा और भीलवाड़ा में उनके फार्महाउस हैं। जल्द ही वे दिल्ली सहित दूसरे राज्यों में भी अपने फार्महाउस लगाने वाले हैं। आज उनकी टीम में 40 लोग काम करते हैं। इसमें हर फील्ड के जानकार लोग शामिल हैं।

अभय कहते हैं कि अभी हम डेवलपिंग स्टेज में हैं। जल्दी ही हम राजस्थान के बाहर भी मार्केट में शिफ्ट हो जाएंगे। हमने अपनी तैयारी लगभग पूरी कर ली है। अगले साल तक हमारा टारगेट हर महीने 40 लाख रुपए के कारोबार का है। कुछ लोगों ने अभय की कंपनी में इन्वेस्ट भी किया है। वे कहते हैं कि हम लोग हर दिन प्रोडक्शन करते हैं और फिर उसे उसी दिन मार्केट में पहुंचा देते हैं। इससे लोगों को ताजी सब्जियां खाने को मिलती हैं। साथ ही हम किसी तरह के पेस्टीसाइड और केमिकल भी इस्तेमाल नहीं करते हैं।

क्या होती है हाइड्रोपोनिक तकनीक?

अभी अभय की टीम करीब 400 घरों में अपने प्रोडक्ट पहुंचा रही है। साथ ही कई दुकानदार और रिटेलर्स भी उनके कस्टमर्स हैं।
अभी अभय की टीम करीब 400 घरों में अपने प्रोडक्ट पहुंचा रही है। साथ ही कई दुकानदार और रिटेलर्स भी उनके कस्टमर्स हैं।

हाइड्रोपोनिक तकनीक खेती की एक ऐसी विधि है जिसमें जमीन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इसमें एक ऐसी व्यवस्था की जाती है ताकि प्लांट के डेवलपमेंट के लिए जरूरी चीजें वॉटर मीडियम के जरिए मुहैया कराई जा सकें। इसमें आमतौर पर कोकोपीट यानी नारियल के वेस्ट से तैयार नेचुरल फाइबर का इस्तेमाल मिट्टी की जगह किया जाता है। कई बार कंकण और पत्थर का भी इस्तेमाल किया जाता है। उसके बाद पानी के जरिए जरूरी मिनरल्स प्लांट को दिया जाता है। अमेरिका, ब्रिटेन और सिंगापुर समेत दुनिया के कई हिस्सों में इस तकनीक का चलन तेजी से बढ़ रहा है।

70% से ज्यादा पानी की बचत, ऑफिस में बैठकर भी कर सकते हैं कंट्रोल

इस तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह भी है कि इसके लिए पानी की जरूरत बहुत अधिक नहीं होती है। सामान्य खेती के मुकाबले इसमें 30% ही पानी की जरूरत होती है। इसलिए ऐसी खेती में चाहे गर्मी हो या ठंड सिंचाई के टेंशन से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही इसे ऑटोमेटिक कंट्रोल सिस्टम के जरिए ऑफिस में बैठकर भी पौधों की देखभाल की जा सकती है। एक स्विच के जरिए पौधों में पानी और जरूरी मिनरल्स पहुंचाया जा सकता है।

आप हाइड्रोपोनिक सिस्टम से खेती कैसे कर सकते हैं?

अभय कोकोपीट की जगह खुद का डेवलप किया हुआ ग्रोइंग चैंबर इस्तेमाल करते हैं। इससे खेती में लागत कम आती है।
अभय कोकोपीट की जगह खुद का डेवलप किया हुआ ग्रोइंग चैंबर इस्तेमाल करते हैं। इससे खेती में लागत कम आती है।

देश में कई जगहों पर इसकी ट्रेनिंग दी जाती है। आप नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से इस संबंध में जानकारी ले सकते हैं। इसके साथ ही कई प्रोफेशनल्स भी इसकी ट्रेनिंग देते हैं। आप खुद के लिए चाहें तो अपनी छत पर इस तरह की खेती कर सकते हैं। इसके लिए मार्केट में सेटअप भी मिल जाता है। आप चाहें तो एक्सपर्ट के जरिए इसे अपने घर में इंस्टॉल करा सकते हैं या फिर खुद भी लर्निंग वीडियो देखकर कर सकते हैं। इस तरह की खेती की शुरुआत 10 से 15 हजार रुपए से की जा सकती है।

लेकिन, अगर आप कॉमर्शियल लेवल पर खेती करना चाहते हैं तो आपकी लागत बढ़ जाएगी। जिस तकनीक से अभय खेती करते हैं, उसमें करीब 20 लाख रुपए की जरूरत होगी। इसके लिए सरकार की तरफ से सब्सिडी मिलती है। आप बैंक से लोन लेकर भी पॉलीहाउस और हाइड्रोपोनिक सिस्टम डेवलप कर सकते हैं।

बिना जमीन के और किन विधियों से की जा सकती है खेती?

वर्टिकल फार्मिंग : इस विधि में घर की दीवारों पर फार्मिंग होती है। इसके लिए गमलों से बनी एक आकृति घर की दीवारों पर लगा दी जाती है। फिर उसमें ऑर्गेनिक खाद, मिट्टी डाल दी जाती है। इसके बाद फूलों के बीज लगा दिए जाते हैं। इसकी बनावट ऐसी होती है कि एक जगह पानी डालने पर सभी गमलों में पहुंच जाता है। इनडोर उगने वाले प्लांट्स इसके लिए सबसे उपयुक्त होते हैं। इस तरह की खेती की शुरुआत 8 से 10 हजार रुपए से की जा सकती है।

तस्वीर वर्टिकल फार्मिंग की है। इसमें घर की दीवारों पर फूल लगाए जाते हैं। इनडोर फार्मिंग के लिए यह बेहतर विकल्प है।
तस्वीर वर्टिकल फार्मिंग की है। इसमें घर की दीवारों पर फूल लगाए जाते हैं। इनडोर फार्मिंग के लिए यह बेहतर विकल्प है।

टेरेस गार्डनिंग : इस तरह की फार्मिंग में घर की छत या द्वार के फर्श का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए प्लांट्स की जरूरत के मुताबिक प्लास्टिक बैग (ग्रो बैग) लिए जाते हैं। उनमें खाद और मिट्टी डाल दी जाती है। फिर उसमें प्लांट्स लगा दिए जाते हैं। आप चाहे तो पुरानी बाल्टी या डिब्बे का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इस तरह की खेती सब्जियों और फलों के लिए बेहतर होती है। छत पर आप आसानी से फलियां, बैंगन, टमाटर और मिर्च जैसी सब्जियां उगा सकते हैं। इस तरह की खेती की शुरुआत 3 से 5 हजार रुपए से की जा सकती है।

तस्वीर टेरेस गार्डनिंग की है। इसमें घर की छत या फर्श पर बैग में मिट्टी और खाद डालकर प्लांटिंग की जाती है।
तस्वीर टेरेस गार्डनिंग की है। इसमें घर की छत या फर्श पर बैग में मिट्टी और खाद डालकर प्लांटिंग की जाती है।



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