मार्च के दूसरे सप्ताह की बात है, यूरोप कोरोना वायरस का नया केंद्र बनता जा रहा था. चीन से हटकर पूरी दुनिया का ध्यान यूरोप पर केंद्रित हो गया था.
आने वाले दिनों में ये साबित भी हो गया, इटली, स्पेन, फ़्रांस और ब्रिटेन जैसे देश इसकी चपेट में आ गए. आज आलम ये है कि इन चारों देशों में हालात काफ़ी मुश्किल बने हुए हैं.
उस दौर में जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल का एक बयान आया था, जिसने जर्मनी के लोगों को सकते में डाल दिया था. एंगेला मर्केल ने कहा था कि जर्मनी की 70 फ़ीसदी आबादी यानी क़रीब 5 करोड़ 80 लाख लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो सकते हैं.
जब एंगेला मर्केल ने ख़ुद को क्वारंटीन किया, तो लगा जर्मनी में भी हालात इटली और स्पेन जैसे हो सकते हैं. लेकिन क़रीब एक महीने बाद जहाँ इटली, स्पेन, फ़्रांस और ब्रिटेन में हर दिन सैकड़ों लोगों की मौत हो रही है, जर्मनी इन सबसे काफ़ी दूर है.
जर्मनी ने ऐसा किया क्या है, जिससे यहाँ मरने वाले लोगों की संख्या भी काफ़ी कम है.
देखा जाए तो जर्मनी में संक्रमित लोगों की संख्या इटली और जर्मनी के आसपास की है. ताज़ा आँकड़ों के मुताबिक़ जर्मनी में संक्रमित लोगों की संख्या 107,000 के आसपास है, जबकि ये संख्या इटली में 135,000 और स्पेन में 141,000 है.
लेकिन अंतर लोगों की मौत में है और अंतर बहुत बड़ा है. स्पेन में जहाँ 14 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हुई है, वहीं इटली में 17 हज़ार से ज़्यादा लोग कोरोना के कारण मारे गए हैं. लेकिन जर्मनी में ये आँकड़ा 2000 के आसपास है.
इस हिसाब से देखें तो जर्मनी में कोरोना के कारण मृत्यु दर सिर्फ़ 0.3 प्रतिशत है, जबकि इटली में ये 9 प्रतिशत और ब्रिटेन में 4.6 प्रतिशत है.
लेकिन ऐसा नहीं है कि जर्मनी में सब कुछ ठीक है और आशंकाएँ नहीं हैं. स्वास्थ्य अधिकारियों का मानना है कि आना वाला समय देश के लिए काफ़ी चुनौतीपूर्ण है.
टेस्टिंग
जानकारों का कहना है कि जर्मनी ने जनवरी के शुरू में ही टेस्ट करने की तैयारी कर ली थी और टेस्ट किट डेवेलप कर लिया था. जर्मनी में कोरोना का पहला मामला फ़रवरी में आया था, लेकिन उसके पहले ही जर्मनी ने पूरे देश में टेस्ट किट्स की व्यवस्था कर ली थी.
इसका नतीजा ये हुआ कि दक्षिण कोरिया की तरह न सिर्फ़ ज़्यादा टेस्टिंग हुई बल्कि उस हिसाब से लोगों को अस्पतालों में भर्ती भी कराया गया.
जर्मनी के मुक़ाबले इटली में कोरोना का संक्रमण दो सप्ताह पहले फैला. लेकिन मौत के मामले में इटली जर्मनी से इतना आगे कैसे निकल गया. दरअसल इटली में ख़ासकर उत्तरी इटली के टेक्सटाइल इंडस्ट्री में चीन का बड़ी आर्थिक भागीदारी है. इस कारण वहाँ संक्रमण तेज़ी से फैला. जर्मनी में ये स्थिति नहीं थी.
जानकार ये भी मानते हैं जर्मनी में शुरुआती मामले ऑस्ट्रिया और इटली के स्की रिजॉर्ट से जर्मनी में फैले. इसके कारण शुरू में कम उम्र वाले लोग ही इससे प्रभावित हुए.
लेकिन इन सबके बावजूद जर्मनी ने शुरू से ही टेस्टिंग को काफ़ी प्राथमिकता दी.
जर्मनी के कई शहरों में टेस्टिंग टैक्सियाँ भी चलाईं गई, जो लॉकडाउन के दौर में लोगों के घर-घर जाकर टेस्ट करती हैं. इससे समय पर लोगों को इलाज कराने में आसानी हुई, जिनमें शुरुआत में यूरोप के कई देश चूक गए.
जर्मनी में स्वास्थ्य अधिकारियों ने लोगों तक ये संदेश पहुँचाया कि अगर आपको संक्रमण के लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो अस्पताल आने की आवश्यकता नहीं. लोगों को सिर्फ़ अधिकारियों को फ़ोन से सूचित करना होता है और उनकी टेस्टिंग घर पर ही हो जाती है.
जर्मनी ने एक सप्ताह में लाख से ज़्यादा लोगों तक की टेस्टिंग की. समय पर टेस्ट करने का फ़ायदा ये हुआ कि लोगों का इलाज भी समय पर हुआ. लोगों को समय से आइसोलेशन में रखा गया और इसके बेहतर नतीजे देखने को मिले.
रॉबर्ट कोच इंस्टीच्यूट के प्रेसिडेंट लोथर वीलर ने मीडिया से कहा, "जर्मनी ने बहुत पहले ही टेस्टिंग शुरू कर दी थी. हमने हल्के लक्षण वालों को भी ढूँढ़ लिया जो बाद में ज़्यादा बीमार पड़ सकते थे."
उन्होंने ये भी स्पष्ट किया कि जर्मनी में ज़्यादा उम्र वाले कोरोना से संक्रमित तो हुए, लेकिन बहुत कम. इटली में जहाँ कोरोना पीड़ितों की औसत आयु 63 वर्ष है, वहीं जर्मनी में ये 47 साल है.
बर्लिन में चैरिटी अस्पताल के प्रोफ़ेसर क्राउज़लिक ने न्यूयॉक टाइम्स को बताया, "हमने न सिर्फ़ लोगों की टेस्टिंग की बल्कि डॉक्टरों और नर्सों की भी नियमित टेस्टिंग की, ताकि कोरोना ज़्यादा न फैले. साथ ही ये टेस्ट्स फ़्री में किए गए. इसका फ़ायदा ये हुआ कि जनता सामने आई और समय पर लोगों को इलाज मिला."
ट्रेसिंग और ट्रैकिंग
जर्मनी ने टेस्टिंग के साथ-साथ ट्रैकिंग को भी उतनी ही प्राथमिकता दी. यूरोप के कई देश और अमरीका भी इसमें चूक गया.
लेकिन जर्मनी ने दक्षिण कोरिया से ट्रैकिंग के बारे में भी सबक सीखा. जानकार भी कहते हैं कि टेस्टिंग के साथ-साथ ट्रैकिंग में भी सरकारों को उतना ही सख़्त रवैया अपनाना चाहिए.
शुरू में जर्मनी ने भी इस ओर कम ध्यान दिया, इसलिए संक्रमण के मामले तेज़ी से बढ़े. लेकिन एक बार जब जर्मनी ने इस पर ध्यान देना शुरू किया, उन्होंने संक्रमित लोगों के संपर्क में आए लोगों को न सिर्फ़ चिन्हित किया, बल्कि उनके इलाज में देरी भी नहीं की.
जर्मनी में इसी ट्रैकिंग के कारण बहुत पहले ही स्कूलों को बंद कर दिया गया और बड़ी संख्या में लोगों को आइसोलेशन में रखा गया.
हेल्थ केयर सिस्टम
जर्मनी के अच्छे हेल्थ केयर सिस्टम की भी इस मामले में तारीफ़ हुई है. जर्मनी ने समय रहते आईसीयू की संख्या बढ़ा ली और बेड्स की संख्या बढ़ाने पर भी ध्यान दिया.
जर्मनी की एक डॉक्टर सुज़ैन हेरॉल्ड ने बताया कि जर्मनी ने अपनी क्षमता इतनी बढ़ा ली है कि अब वो इटली, स्पेन और फ़्रांस से आ रहे मरीज़ों का भी इलाज अपने यहाँ कर रहा है.
जनवरी में जर्मनी के पास वेंटिलेटर युक्त आईसीयू बेड्स की संख्या 28 हज़ार थी, लेकिन अब ये संख्या बढ़कर 40 हज़ार हो गई है.
जर्मनी की स्वास्थ्य व्यवस्था की इसलिए भी तारीफ़ हो रही है, क्योंकि यहाँ ऐसी गंभीर बीमारियों के लिए हर 1000 लोगों पर छह के लिए आईसीयू बेड्स हैं, जबकि फ़्रांस में ये औसत 3.1 है, जबकि स्पेन में ये 2.6 है. ब्रिटेन में 1000 लोगों पर सिर्फ़ 2.1 ऐसे बेड्स हैं.
जर्मनी का हेल्थ केयर सिस्टम पूरी तरह फ़्री है, इसलिए लोगों को और आसानी हुई और लोगों ने आगे आकर संक्रमण के बारे में जानकारी दी.
सरकार को मिला भरपूर समर्थन
इन सबके अलावा जर्मनी ने समय रहते काफ़ी सख़्त क़दम उठाए. वो चाहे सीमाएँ बंद करने का फ़ैसला हो या फिर सोशल डिस्टेंसिंग का.
मार्च के आख़िर में चांसलर एंगेला मर्केल ने घोषणा की कि सार्वजनिक जगहों पर तीन से ज़्यादा लोग एक साथ नहीं रह सकते.
सोशल डिस्टेंसिंग और अन्य पाबंदियों को लेकर जनता ने चांसलर एंगेला मर्केल का ख़ूब समर्थन किया. जर्मनी की जनता में जागरुकता भी ख़ूब देखी गई. इसी कारण देश में पूर्ण लॉकडाउन न होते हुए भी लोग पाबंदियों का अच्छी तरह पालन कर रहे हैं.
और ये एक बड़ी वजह है कि जर्मनी में कम लोगों की मौत हुई है.
आने वाले समय में चुनौती
लेकिन इन सबके बीच जर्मनी के स्वास्थ्य अधिकारियों की कुछ चिंताएँ भी हैं. कई जानकारों का मानना है कि जर्मनी में अभी बुरा दौर आना बाक़ी है.
जर्मनी में वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या कम नहीं है. ये ज़रूर है कि जर्मनी में मृत्यु दर काफ़ी कम है.
द बर्लिन स्पेक्टेटर में छपी रिपोर्ट में कहा गया है कि जर्मनी अपने आप को मुश्किल दौर के लिए तैयार कर रहा है. जर्मनी के मंत्री हेल्गे ब्राउन का कहना है कि ये चिंता संक्रमित लोगों की संख्या को लेकर है.
उन्होंने बताया कि सरकार का ध्यान अब इस ओर है और इस दिशा में काम भी हो रहा है. उन्होंने सोशल डिस्टेंसिंग और अन्य गाइडलाइंस का समय और बढ़ाने की ओर इशारा भी किया है.
उन्होंने ये भी माना कि देश में बड़ी मात्रा में मास्क की ज़रूरत है और आने वाले दिनों में इसकी माँग और बढ़ेगी. सरकार इसको भी लेकर तैयारी कर रही है.