जब पहली बार ऋषि कपूर को महसूस हुआ उनके पास अमिताभ बच्चन से ज्यादा स्कोप था

Posted By: Himmat Jaithwar
4/30/2021

अमिताभ और ऋषि कपूर, एक एक्शन हीरो दूसरा रोमांटिक हीरो। दोनों का दौर लगभग साथ साथ चला, दोनों ने साथ-साथ काम भी किया। ‘नसीब’ का गाना ‘चल चल मेरे भाई’ हो या फिर ‘कुली’ का सॉन्ग ‘लंबूजी लंबूजी’ ये दोनों जब भी स्क्रीन पर साथ-साथ आते थे तब दर्शकों से दोगुना प्यार पाते थे।

ऋषि कपूर एक एक्टर के तौर पर अपनी दूसरी पारी में अपने किरदारों के प्रति बहुत ही सचेत हो गए थे। वो किरदार की मनोस्थिति में जाकर उसे प्रकट करने की कोशिश में रहते थे। वो चाहते थे कि उन्हें अभी बहुत ही डेप्थ वाले किरदार करना हैं। ऋषि कपूर की पहली पुण्यतिथि पर फिल्म के राइटर डायरेक्टर ने शेयर किए अपने अनुभव।

अमिताभ के साथ काम पर कही थी ये बात
अपनी किताब ‘खुल्लम खुल्ला’ में ऋषि कपूर ने बेझिझक बताया है कि वो दौर ही एक्शन फिल्मों का था, अमिताभ के लिए ही खास स्क्रिप्ट लिखी जाती थी। इसलिए जिन फिल्मों में अमिताभ हों उन में दूसरे कलाकारों को ज्यादा अहमियत नहीं मिलती थी। यही कारण था जिसके चलते ऋषि ने ‘कभी कभी’ में काम करने से साफ मना कर दिया था। वो तो यश चोपड़ा ने शशि कपूर को दरम्यान होने को कहा और तब जाकर ऋषि और अमिताभ पहली बार ऐसी फिल्म में साथ आए जिसमें दोनों के रोमांटिक किरदार थे।

अपने एक्टिंग करियर के उत्तरार्ध में अमिताभ और ऋषि दोनों ने अपनी स्थापित इमेज को तोड़ दिया और कई यादगार रोल निभाए। और इसी दौर में 27 साल बाद पहली बार दोनों स्क्रीन पर साथ आए वो फिल्म थी ‘102 नॉट आउट’। इसी नाम के गुजराती प्ले पर बनी ये ऐसी फिल्म थी जहां ऋषि कपूर को शायद लगा था कि उन के किरदार में अमिताभ से भी ज्यादा स्कोप है। 102 साल के दत्तात्रेय वखारिया के किरदार में अमिताभ वैसे ही जैसे वो पहले से हैं पर जो किरदार बदलता है, यानी कि जिस किरदार में परिवर्तन आता है वो है उन के 75 साल के बेटे बाबूलाल का। जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, 102 साल के पिता अपने 75 साल के बेटे का जिंदगी जीने का अंदाज बदल देते हैं। और बाबूलाल रूप में इस बदलाव को ऋषि कपूर ने बहुत बखूबी दिखाया था।

पहली बार वर्कशॉप की और कहा अब हर फिल्म में करूंगा
‘102 नॉट आउट’ के डायरेक्टर उमेश शुक्ला ने ‘दैनिक भास्कर’ से बातचीत में कहा कि जब मैंने और फिल्म के राइटर सौम्य जोशी ने उनको पहली बार फिल्म की स्टोरी बताई तो वे बहुत ही रोमांचित हो उठे थे और सिर्फ दस मिनट में बोल दिया था कि हां मैं ये फिल्म करूंगा। फिल्म में सीधा शूटिंग करने से पहले वर्कशॉप करने का तय हुआ। ये सुनकर ऋषि ने पहले तो इनकार कर के बोल दिया कि इतने सालों में हम तो सीधा शूटिंग शुरू करते हैं, ऐसी वर्कशॉप कभी नहीं की। फिर उन्हें बताया गया कि अमिताभ भी वर्कशॉप के लिए तैयार हैं। अमिताभ के लिए उनके मन में इतनी रिस्पेक्ट थी कि उन्होंने तुरंत हां कर दी।

वर्कशॉप शुरू हुई तो पहले रीडिंग सेशन्स हुए। रीडिंग में अमिताभ अपना किरदार खुद पढ़ते थे जबकि ऋषि का किरदार कभी मैं खुद या सौम्य पढ़ते थे। बाद में ऋषि जी भी इसे इंजॉय करने लगे और उन्होंने अपना किरदार खुद पढ़ना शुरू कर दिया। बाद में तो उन्हें इतना मजा आने लगा कि वो बोलते थे कि ये बहुत अच्छी प्रोसेस है, अब से मैं हर फिल्म में ये करूंगा ताकि शूटिंग के वक्त ज्यादा सवाल ही न आएं।

राइटर सौम्य जोशी
राइटर सौम्य जोशी

राइटर सौम्य से बन गया था अनोखा रिश्ता
ओरिजिनल गुजराती ड्रामा और उसका फिल्मी संस्करण दोनों लिखने वाले राइटर सौम्य जोशी ‘दैनिक भास्कर’ के साथ बातचीत में याद करते हैं कि वो जब पहली बार ऋषि कपूर के साथ स्क्रिप्ट रीडिंग के लिए बैठे तब उनकी आंखों में एक चमक आ गई थी, वो बोल पड़े थे, ‘यार बहुत कमाल का सब्जेक्ट है, और इसमें ये कॉमेडी कैसे ला पाए हो। कुछ सीन पढ़ने के बाद ऋषि ने सौम्य को बोला था- ‘यार, आप पठन भी बहुत अच्छा कर लेते हो’ बस उसी वक्त से उनके साथ एक अनोखा रिश्ता शुरू हुआ था।

उमेश बताते हैं कि जैसे-जैसे किसी की उम्र बढ़ती है और खास कर वो किसी मुकाम पर पहुंचता है उसके बाद वो अपनी सोच को लेकर, अपने काम करने के रवैए को लेकर सख्त हो जाता है। पर ऋषि जी इस मामले में बहुत ही फ्लैक्सिबल थे। उन्होंने तुरंत ये नया ढंग स्वीकार कर लिया और पूर्ण निष्ठा से उसमें आगे बढ़े। वो किरदार की गहराई में इतने अंदर उतर गए थे। हमें काफी लोगों ने बताया था कि ऋषि जी लेट नाइट शूटिंग पसंद नहीं करते पर हमारे साथ कई रात तक शूटिंग की। एयरपोर्ट का सीन हमने एक अस्पताल में क्रिएट किया था। वहां देर रात को ही शूटिंग की परमिशन थी। वहां उन्होंने पूरी रात शूटिंग की और एयरपोर्ट सीन की वजह से थोड़ा क्राउड था वो भी खुद ने ही संभाला। सुबह चार बजे भी एकदम फ्रेश दिखते थे और पूछते कि बोलो अभी क्या करना है।

एक बार उनको पता चल जाता कि सामने वाला अपना काम जानता है उस के बाद वो खुद इन्वॉल्व हो जाते थे। वो खूद शूट पर इतनी मौज करा देते थे कि किसी को कोई थकान महसूस नहीं होती थी। नरीमन पॉइंट पर बारिश के बीच वह अपने बेटे को मिस कर रहे थे ऐसा सीन शूट हो रहा था। बारिश के सीन में अक्सर रीटेक बहुत होते थे। कभी टेक्निकल वजह से भी रीटेक होते थे पर वो सब संभाल लेते थे।

राइटर की सोच और अपनी सोच मिलाने की कोशिश में रहते
सौम्य ने बताया कि ऋषि जी बहुत बड़े दिलवाले थे। एक बार किसी को दोस्त बोल दिया तो उम्र का फासला भूलकर सचमुच दोस्ती का अनुभव कराते थे। ये सारी बातें हमने सिर्फ सुनी ही थीं। पर ये फिल्म की मेकिंग के दौरान हर वक्त वो महसूस भी होता रहा। इसी समय उनको ऋषि जी के व्यक्तित्व का वो पहलू दिखाई दिया जिसके बारे में कम सुना गया था। ऋषि जी कभी मेथड एक्टर की तरह किरदार तैयार करने के लिए जाने नहीं जाते थे। पर इस फिल्म दौरान पता चला कि ऋषि जी एक राइटर के दिमाग में क्या चल रहा है उसे पूरी तरह समझने की धुन में लगे रहते थे। उनकी बातों से पता चलता था कि वो इसी कोशिश में रहते थे कि एक किरदार जैसा राइटर ने सोचा है और जैसा उस किरदार के बारे में मैं सोचता हूं वो दोनों सोच का कहीं मिलन हो जाना चाहिए, तभी ये स्क्रीन पर वैसा किरदार दिखेगा जैसा राइटर के दिमाग में पहले जन्मा है।

राइटर से टच में रहते थे चिंटूजी
सौम्य बताते हैं कि इसी वजह से वो हरदम संपर्क में रहते थे। बार-बार उन के कॉल, उनके मैसेज आते ही रहते थे, ये सीन में ऐसा क्यों है, ये क्या बात है, शूटिंग में इसमें क्या होगा, क्या कर सकते हैं ऐसी पूछताछ करते ही रहते थे। इतना ही नहीं शूटिंग के वक्त भी बोलते के जब मैं शॉट देने जाऊं तब मेरे कान में पूरा सीन बोल देना, और फिर वो उसी तरह के भाव से शॉट देते थे।

ऐसी बातों से ही ये आइडिया आया था कि जो आदमी सदा तनाव में रहता है उस के कंधे एकदम अकड़े से रहते हैं। पर जैसे-जैसे बाबूलाल का किरदार तनाव से मुक्त होता है वैसे वैसे उनके कंधे भी हल्के होते जाते हैं। ऐसी काफी बारीकियां चर्चा के परिणाम स्वरूप ही उभरकर आई थीं।

डायरेक्टर उमेश शुक्ला के साथ अमिताभ और ऋषि कपूर
डायरेक्टर उमेश शुक्ला के साथ अमिताभ और ऋषि कपूर

आज वो बहुत याद आ रहे हैं- उमेश और सौम्य
उमेश बताते हैं कि हम अभी इंडस्ट्री में नए-नए थे और ऋषि जी इतने बड़े नामी कलाकार पर फिर भी फिल्म के बाद भी वो लगातार संपर्क में रहते थे और पूछते रहते थे कि नया क्या कर रहे हो, मेरे लिए नया क्या सोच रहे हो, मैंने पहली इनिंग में स्वेटर पहन के पहाड़ी पर गाने ही किए हैं, पर आज के डायरेक्टर सही में मुझे चैलेंजिंग किरदार दे रहे हैं। वो नए डायरेक्टर और राइटर के साथ अभी और चैलेंजिंग काम करना चाहते थे। उनका वो दोस्ताना, वो प्यार भरा एकदम परिवार जैसा अंदाज बहुत मिस हो रहा है।

सौम्य ने भी यही कहा कि 102 नॉट आउट रिलीज होने के बाद भी अकसर उनके फोन आते रहते थे। बोलते थे के मेरे लिए कुछ रोचक, बहुत ही शानदार कुछ लिखना। मुझे अभी बहुत कुछ करना है। कोई दमदार आइडिया लाओ, हर छोटे-मोटे त्योहार पर याद करते थे। नई युवा प्रतिभाओं के बारे में और खास तौर पर राइटर के बारे में बहुत सोचते थे। बोलते थे कि हमने अपने करियर में कोई जोखिम उठाया ही नहीं पर अब आप लोग हम से नए-नए किरदार करवा रहे हो तो बहुत आनंद आ रहा है। सदा खुश रहने वाले और सब को खुश रखने वाले इन्सान थे। ये अफसोस रहेगा कि मेरा और उनका रिश्ता पहले क्यों नहीं बना। पर इतने कम समय में भी जो गहरा नाता बना उसके बाद आज वो बहुत याद आ रहे हैं।



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